पाकिस्तान सरकार भारत से करतारपुर गुरुद्वारा साहिब आने वाले सिख श्रद्धालुओं के लिए कॉरिडोर खोलने जा रही है। इस गलियारे की आधारशिला पाकिस्तान के पीएम इमरान खान द्वारा 28 नवंबर को रखी जाएगी, जबकि 26 नवंबर को भारत के राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद और अमरिंदर सिंह भारतीय पक्ष पर अग्रणी समारोह करेंगे।
ऐसा होने पर सिख तीर्थयात्री बिना वीजा करतारपुर आ सकेंगे। फिलहाल अभी भारतीय सीमा में डेरा बाबा नानक स्थित गुरुद्वारा शहीद बाबा सिद्ध सैन रंधावा में दूरबीन की मदद से करतारपुर साहिब का दर्शन किए जाते हैं। पाकिस्तान स्थित गुरुद्वारा श्री करतापुर साहिब भारतीय सीमा से महज 4 किलोमीटर की दूरी पर है। इस गुरुद्वारे और नगर का काफी महत्व है। सिखों के गुरु नानक जी ने करतारपुर को बसाया था और यहीं इनका परलोकवास भी हुआ।
सिद्धू को किया आमंत्रित, लेकिन…
इमरान खान ने पाकिस्तान के करतारपुर साहिब गलियारे के फाउंडेशन समारोह के लिए पंजाब में उनके करीबी दोस्त और कांग्रेस विधायक नवजोत सिंह सिद्धू को आमंत्रित किया है।
रिपोर्ट की पुष्टि करते हुए सिद्धू ने कहा, ‘मुझे पाकिस्तान के प्रधान मंत्री इमरान खान से निमंत्रण मिला और भारत के पाकिस्तान उच्चायोग ने मुझसे भी यात्रा के बारे में जानने के लिए मुझसे संपर्क किया है।’
हालांकि, सिद्धू ने कहा कि वह इस बार पड़ोसी देश की यात्रा के लिए मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह और भारत सरकार की अनुमति मांगेंगे। यह गलियारा भारत से सिख तीर्थयात्रियों को पाकिस्तान में गुरुद्वारा दरबार साहिब करतरपुर तक आसानी से पहुंच देगा, जहां गुरु नानक देव ने 18 साल बिताए थे।
केंद्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने कहा कि सभी आधुनिक सुविधाओं और सुविधाओं के साथ करतरपुर कॉरिडोर परियोजना, तीर्थयात्रियों को आसान और आसान मार्ग प्रदान करने के लिए केंद्र सरकार के वित्त पोषण के साथ लागू की जाएगी।
करतारपुर गुरुद्वारा साहिब से जुड़ी रोचक बातें
- श्री करतारपुर गुरुद्वारा साहिब पाकिस्तान के नारोवाल जिले में स्थित है। यह गुरुद्वारा नानक जी की समाधि पर बना है। यहां बड़ी संख्या में भारतीय दर्शन करने जाते हैं।
- भारत और पाकिस्तान के बॉर्डर के नजदीक बने इस गुरुद्वारे के आसपास अक्सर हाथी घास काफी बड़ी हो जाती है। जिसे पाकिस्तान अथॉरिटी छंटवाती है ताकि भारतीय सीमा से यहां के दर्शन हो सकें।
- यह स्थल रावी नदी के किनारे पर बसा है और भारतीय सीमा के डेरा साहिब रेलवे स्टेशन से महज चार किलोमीटर की दूरी पर है।
- यहां के तत्कालीन गवर्नर दुनी चंद की मुलाकात नानक जी से होने पर उन्होंने 100 एकड़ जमीन गुरु साहिब के लिए दी थी। 1522 में यहां एक छोटी झोपड़ीनुमा स्थल का निर्माण कराया गया। करतारपुर को सिखों को पहला केंद्र भी कहा गया है। सिख धर्म से जुड़ी कई किताबों में भी इसका जिक्र किया गया है।
- यहां गुरुनानक जी खेती-किसानी करते थे। बाद में उनका परिवार भी यहां रहने लगा। उन्होंने लंगर की शुरुआत भी यहां से की। सिख धर्म के लोग इस नेक काम में शामिल होने के लिए यहां इकट्ठा होने लगे और सराय बनवाई गईं। धीरे-धीरे कीर्तन की शुरुआत हुई। नानकदेवी जी ने गुरु का लंगर ऐसी जगह बनाई गई जहां पुरुष और महिला का भेद खत्म किया जा सके। यहां दोनों साथ बैठकर भोजन करते थे।
- यहां खेती करने, फसल काटने और लंगर तैयार करने का काम संगत के लोगों द्वारा किया जाता था। बाद में करतारपुर गुरुद्वारा साहिब का भव्य निर्माण 1,35,600 रुपए की लागत में किया गया था। यह राशि पटियाला के महाराजा सरदार भूपिंदर सिंह ने दी थी।
- 1995 में पाकिस्तान सरकार ने इसकी मरम्मत कराई थी और 2004 में इसे पूरी तरह से संवारा गया। एक तरफ रावी नदी और दूसरी तरफ जंगल होने के कारण इसी देखरेख में दिक्कत भी होती है।
- गुरुनानक ने रावी नदी के किनारे एक नगर बसाया और यहां खेती कर उन्होंने ‘नाम जपो, किरत करो और वंड छको’ (नाम जपें, मेहनत करें और बांट कर खाएं) का सबक दिया था।
- इतिहास के अनुसार गुरुनानक देव की तरफ से भाई लहणा जी को गुरु गद्दी भी इसी स्थान पर सौंपी गई थी। जिन्हें दूसरे गुरु अंगद देव के नाम से जाना जाता है और आखिर में गुरुनानक देव ने यहीं पर समाधि ली थी।
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