प्रतीकात्मक चित्र।
हर साल दुनिया में 8 लाख लोग आत्महत्या कर रहे हैं। यह हत्याओं और युद्ध के कारण मरने वाले लोंगों की कुल संख्या से भी ज्यादा है। इसका मतलब है कि हर 40 सेकंड में 1 व्यक्ति अपनी जान ले रहा है।
लेकिन जब ऐसा कोई व्यक्ति जिसे आप जानते हों या फिर जो समाज में लोकप्रिय या महत्वपूर्ण हो, ऐसा करता है तभी हम इस बात पर ध्यान देते हैं। डिप्रेशन और मनोवैज्ञानिक परिस्थितियां लोगों को आत्महत्या करने के आख़िरी कदम तक ले जा सकती हैं।
क्यों और कहां से आते हैं आत्महत्या के विचार
हमारी शिक्षा व्यवस्था में हमने ऐसा कुछ नहीं रखा है जो हमें हमारे शारीरिक और मनोवैज्ञानिक ढांचे को संभालना सिखाए। भारत की नई शिक्षा नीति भी इस बात पर ज्यादा जोर नही देती है। ज्यादातर मनुष्यों को यह नहीं सिखाया गया है कि वे अपनी बुद्धिमत्ता को कैसे संभालें?
आप के पास जितना दिमाग है, उसका सिर्फ आधा होता तो आपको कोई मानसिक बीमारी न होती। अब, आपके पास एक खास स्तर की बुद्धिमत्ता है पर न तो आपको कोई प्रशिक्षण दिया गया है, न ही आप ऐसी सामाजिक परिस्थितियों में रहते हैं जहां आपको ये सिखाया गया हो कि अपनी खुशहाली के लिए अपनी बुद्धिमत्ता का उपयोग कैसे करें? तो, आपकी अपनी ही बुद्धिमत्ता आपके खिलाफ जा रही है। आपको परिस्थितियां इतनी ख़राब लगने लगती हैं कि आत्महत्या के सिवा कोई चारा नज़र नहीं आता और इसकी वजह से लोग आत्महत्या का कदम उठाते हैं।
इसको आसानी से रोका जा सकता है, अगर कोई सही व्यवस्था हो जिसमें बचपन से ही सब को कुछ खास प्रक्रियाएं सिखाई जाएं जिससे वे अपने स्वभाव से ही शांतिपूर्ण रहें, और उनके जीवन के अनुभव स्वाभाविक रूप से सुखद हों। जब वे अपने स्वभाव से ही शांतिपूर्ण हो जाएंगे तो फिर कोई अपनी ही जान क्यों लेगा? कोई डिप्रेस्ड क्यों रहेगा?
डिप्रेशन से बाहर आना का आसान तरीका
डिप्रेशन का मतलब सिर्फ जिसे मेडिकल आधार पर डिप्रेशन कहते हैं, वही नहीं है। आज आपके जीवन के साथ अगर कोई दो बातें भी गलत हो जाती हैं तो आप हल्के से डिप्रेशन में आ ही जाते हैं। अधिकतर लोग कभी न कभी, जीवन की किसी परिस्थिति के कारण, डिप्रेशन में आना शुरू हो जाते हैं पर कुछ ही घंटों में वे अपने आपको इसमें से बाहर निकाल लेते हैं।
वे किसी तरह की प्रेरणा का उपयोग करते हैं जैसे किसी के लिए उनका प्रेम, राष्ट्र या और कुछ भी जो उनके जीवन में उनके लिए कुछ महत्व रखता है, और वे इससे बाहर आ जाते हैं। या तो आप खुद ही सोच-विचार करके इसमें से बाहर आते हैं या फिर अपने किसी दोस्त को, परिवार में किसी को बताते हैं जो आपके साथ बात कर के आपको इसमें से बाहर निकालते हैं। अगर ऐसा कोई नहीं है तो आप किसी पेशेवर सलाहकार की मदद लेते हैं।
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अगर डिप्रेशन से बाहर आने का रास्ता नहीं होता, तो कोई मनोवैज्ञानिक क्यों आपके साथ बैठ कर घंटों बात करेगा? स्पष्ट है कि वे जानते हैं कि वे आप से बात कर के आपको इससे बाहर निकाल सकते हैं। नहीं तो फिर दवाओं की मदद लेनी पड़ती है। जब बात दवाओं यानी रसायनों की आती है, तो हमारा मनुष्य शरीर इस धरती पर सबसे ज्यादा जटिल पर प्रभावशाली रासायनिक कारखाना है। सवाल यही है कि आप इस रासायनिक कारखाने के बढ़िया मैनेजर हैं या बेकार मैनेजर हैं? योग का मतलब ये है कि आप अपने खुद के रासायनिक कारखाने के कुशल मैनेजर हैं।
योग द्वारा आत्महत्या की रोकथाम
योग का फायदा लाखों लोगों ने लिया है। अब तो खून के परीक्षण भी किए जा रहे हैं और हम साफ तौर पर देख रहे हैं कि अनुवांशिक समस्याएं भी योग क्रियाओं से ठीक हो रही हैं।
यौगिक क्रियाएं कर आप न केवल मनोवैज्ञानिक बीमारियों को होने से रोक सकते हैं, बल्कि अगर इन क्रियाओं को सही ढंग से करें तो बीमार लोग भी अपनी बीमारी में से बाहर आ सकते हैं। एक ही समस्या है कि जब कोई मानसिक डिप्रेशन की अवस्था में हो तो उनसे यौगिक क्रियाएं करवापाना ही एक बहुत बड़ी चुनौती है। अगर उनके साथ समर्पित लोग नहीं हैं जो उन्हें सहायता दे कर ये करा सकें तो हर रोज उनसे ये करा पाना संभव नहीं होगा।
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