इंसान के मन में भावनाओं का अंत कभी नहीं होता। ये भावनाएं जिंदगी में हर तरह के रंग दिखलाती हैं, लेकिन इन भावनाओं को आखिर बनाता कौन है? और इसका सीधा सा उत्तर है ‘हम’, हम ही अपनी भावनाओं के निर्माता, निर्देशक और अभिनेता हैं।
लेकिन ऐसे कई लोग हैं जो खुद के भावनात्मक पहलू को कमजोर बनाने में लगे रहते हैं। वह चाहें तो सब कुछ बेहतर कर सकते हैं, लेकिन वह बेहतर बनते काम को भी बिगाड़ देते हैं। जैसा हम मन में सोचते हैं, वही होने लगता है। आप अच्छा सोचेंगे तो अच्छा होगा और बुरा सोचेंगे तो बुरा ही होगा। आप ही अपने भाग्य निर्माता हैं, लेकिन भाग्य तभी जाग्रत होगा जब हम अपनी पुरानी यादों और घटनाओं को छोड़ देंगे। आपको यह जानना बेहद जरूरी है कि यदि खराब घटनाओं और खराब यादों को मन में जगह दी जाए तो यह जीवन को नर्क बना देती हैं।
वास्तविक जिंदगी से सीखें यह बात
यह ठीक वैसा ही है जैसा कि हिंदी फिल्मों में होता है। हीरो किसी से मिलता है, झगड़ता हैं और नाराज हो जाता है। इस नाराजगी को हीरो भुलाता नहीं बल्कि उसे मन के किसी कोने में रख लेता है, यही नाराजगी आगे चलकर ‘बदला’ लेने का भाव मन में पैदा करती है और होता ये है कि हीरो सब काम छोड़ कर बदला लेने की कोशिश में सारी ऊर्जा लगा देता है। हालांकि फिल्मों में हीरो को ही विजेता दिखा दिया जाता है, लेकिन वास्तविक जिंदगी में यदि आप ऐसा करने का विचार भी कर रहे हैं तो कई बार विचार कीजिएगा। अमूमन देखा गया है कि बदला लेने की भावना उन लोगों में होती है जो नकारात्मकता के मूर्त रूप में धरती पर रह रहे हैं।
घटना को कुछ क्षण बाद भूल जाइए
आध्यात्मिक गुरु बीके शिवानी कहती हैं, ‘आपके साथ जो भी घटना होती है उसे कुछ क्षण बाद भूल जाइए। यदि इसे आप नहीं भूलते हैं तो यह नासूर बन जाती हैं और बाद में यही समस्याएं विकराल रूप लेकर आपकी जिंदगी को प्रभावित करती हैं। यह घटनाएं भावनाओं को नुकसान पहुंचाती हैं, जिससे की व्यक्ति सोचने, समझने और बोलने की क्षमता प्रभावित होती है।’
न खेलें मन के अंदर डबल गेम
तो वहीं, सद्गुरु जग्गी वासुदेव के शब्दों में कहें तो जब आप अकेले होते हैं, तो यह अपने ऊपर ध्यान देने, विकास करने का समय होता है अपने ही अंदर प्रतिस्पर्धा या कॉम्पीटीशन का नहीं। अगर आप अपने मन के अंदर डबल गेम खेलते हैं और वह अच्छा चलने लगता है, तो आप मानसिक रूप से बीमार हो जाएंगे।
मन में अच्छे भाव करें रोपित
जब आप किसी बहती नदी में कुछ पत्ते डालते हैं तो वह नदी की धारा के साथ आगे की ओर बढ़ जाते हैं। ठीक इसी तरह हमारे आस-पास घटित घटनाएं होती हैं, जिन्हें हमको जल्द से जल्द भुला कर आगे बढ़ते रहना चाहिए। इन घटनाओं को जितना अधिक मन में रखेंगे, उतना ही कष्ट होगा। ऐसे में हम भावनात्मक रूप से खुद के लिए मुसीबत का कारण बना रहे होंगे। हमारे वेदों और पुराणों में भी कहा गया है लोगों को क्षमा करें और आगे बढ़ें क्योंकि जिंदगी आपस में ईर्ष्या और बदला लेने के लिए नहीं है, बल्कि आगे बढ़ने के लिए है।
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