सदियों से भारत में जातिवाद एक ऐसी सामाजिक चुनौती बनी हुई है, जिसके कारण ऐसे कई लोग हैं, जिन्हें कई बार सार्वजनिक जगहों पर अपमानित होना पड़ा है। गौर करने वाली बात यह है कि हमारे संविधान के अनुच्छेद-17 में जाति के उन्मूलन की बात जरूर कही गई है, लेकिन केरल के स्टूडेंट्स ने खुद को इस जकड़न से खुद को मुक्त कर देश में एक सकारात्मक संदेश देने की पहल की है।
देश में विकास के दावे भले ही सरकार करती रहे, लेकिन सरकार का यह विकास जाति और धर्म के आस-पास ही घूमता है। इसको देखते हुए केरल के लगभग 1.2 लाख स्टूडेंट्स ने स्कूल में दाखिले के वक्त अपनी जाति या धर्म का जिक्र करने से मना कर दिया।
केरल के शिक्षा मंत्री प्रोफेसर सी रविंद्रनाथ ने विधानसभा में इस बात का खुलासा किया। उन्होंने पिछले दिनों बताया कि इस शिक्षण सत्र में पहली से 10वीं कक्षा में कुल 3.16 स्टूडेंट्स ने प्रवेश लिया। स्कूल में एडमिशन के वक्त 1.2 छात्रों ने जाति-धर्म का विकल्प खाली छोड़ दिया। यह डेटा राज्य के 9,000 स्कूलों से एकत्रित किया गया। इसमें बीते साल की तुलना में इस साल एडमिशन में भी बढ़ोत्तरी दर्ज की गई है। इस पूरे घटनाक्रम को लेकर राज्य ही नहीं अब देशभर में चर्चाओं का दौर जारी है।
हालाकि पिछले साल कांग्रेस विधायक वीटी बलराम और सीपीआई (एम) के सांसद एम बी राजेश ने जाति-धर्म से जुड़ी जानकारी देने से इनकार कर दिया था। युवा और स्टूडेंट्स की यह पहले दर्शाती है कि हमारे समाज में नई सोच रखने वाली बच्चे और युवा पीढ़ी किस तरह समाज से जातिवाद सामाजिक चुनौतियों से सामना करते हुए इन्हें दूर करने पर अपना पक्ष पूरे जज्बे के साथ लोगों के सामने रख रही है।
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