- सुरुचि अग्रवाल
बच्चे उन्हें प्यार से बैजू भैया बुलाते हैं और यह लाज़मी भी है। क्योंकि बैजू भैया उन 650 बच्चों के लिए किसी सुपर हीरो से कम नहीं हैं, जिन बच्चों की जिंदगी को उन्होंने संवारा है।
बैद्यनाथ कहते हैं कि वो ह्युमन ट्रैफिकिंग (मानव तस्करी) के जाल को तोड़ कर ही रहेंगे और उनका यह लक्ष्य अब जूनून में तब्दील हो गया है। दिन हो या रात, ख़बर की आहट से ही बैद्यनाथ कुमार चल पड़ते हैं, लापता बच्चों को उनके परिजनों से मिलाने। खेलने कूदने की उम्र में बाल मजदूरी करने वाले बैद्यनाथ आज न सिर्फ बच्चों की जिंदगी को बचा रहे हैं बल्कि शिक्षित कर उन्हें नई दिशा दे रहे हैं।
बेचते थे चाय और इस तरह लेते थे ट्रेनिंग
बैजू भैया बताते हैं, ‘मैंने साल 1994 में रांची स्थित एडमिनिस्ट्रेटिव ट्रेनिंग इंस्टिट्यूट (एटीआई) में, मैं अधिकारियों के बर्तन साफ़ करता था और उन्हें चाय पिलाता था। चाय परोसते समय मैं अधिकारियों की दी जाने वाली ट्रेनिंग को ध्यान से सुनता था और पीछे की बेंच पर बैठ कर उन्हें नोट भी करता था। तभी 2000 में जेजे एक्ट (जुवेनाइल जस्टिस एक्ट) आया, अधिकारीयों को जब इस कानून की जानकारी दी जा रही थी। मैंने यह सब कुछ बड़े ध्यान से सुना तभी मुझे अहसास हुआ कि इस कानून का उल्लंघन हो रहा है। मैंने और वहां काम कर रहे मेरे अन्य साथियों ने सवाल उठाया कि क्या सच में इस कानून का सही से अनुपालन हो रहा है, क्या सिर्फ भाषण से काम चल जाएगा या कुछ पहल की आवश्यकता है? मेरी इस पहल से मुझे वहां की नौकरी से निकाल दिया गया। बस यहीं से प्रेरणा लेते हुए 2002 में समाज सेवी सीता स्वांसी के साथ मिलकर दिया सेवा संस्था की नींव रखी और इस दिशा में काम करने लगा।’
5000 से ज्यादा बच्चों का करा चुके हैं स्कूलों में नामांकन
बैद्यनाथ बताते हैं कि मैने जानने की कोशिश की कि लड़कियों के दिल्ली जाने का कारण क्या है। यह जानने के लिए मैं दिल्ली चला गया और दिल्ली में प्लेसमेंट एजेंसी में 6 महीना काम किया। मैंने यह जानने की कोशिश की प्लेसमेंट एजेंसी होती क्या है और इस नेक्सस को तोड़ने के लिए शक्तिवाहिनी,दिया सेवा संस्थान और सीआईडी अधिकारीयों के साथ मिल कर काम किया और 25 दिसंबर 2012 को एक रेस्क्यू ऑपरेशन चलाया, जिसके तहत दिल्ली के प्लेसमेंट एजेंसी में छापामारी हुई और करीब 120 लड़कियों को रेस्क्यू करा कर उन्हें उनके घर सही सलामत पहुंचाया गया।
यह भी पढ़ें : बेहतर भविष्य की नींव के लिए प्लास्टिक इंजीनियरिंग है बेस्ट ऑप्शन
मैंने उनकी शिक्षा पर भी काम किया, कांके (रांची) में 5000 बच्चों के लिए नाईट स्कूल सेन्टर शुरू किया, इसमें कुछ मदद मेरे दोस्तों ने की, कुछ सरकार ने किया। जो बच्चे ईंट भट्ठे में काम करते थे, गाय बैल चलाते थे, उनके लिए 4-4 घंटे का मैन शॉर्ट टर्म क्लास शुरू किया। इन बच्चों को पढ़ने लिखने का ज्ञान कराया और फिर 5000 से ज्यादा बच्चों का स्कूलों में नामांकन कराया। आज अधिकांश लड़के-लड़कियां उनमें से 10+2 कर चुके हैं। मेरी यह कोशिश रांची, खूंटी, सिमडेगा, गुमला और लोहरदगा इन सारे जिलों में चल रही है।
दलालों और मानव तस्करों को सजा क्यों नहीं?
झारखंड सरकार द्वारा उठाए गए कदम का कोई ठोस विकल्प नहीं है। झारखण्ड प्लेसमेंट एजेंसी रेगुलेशन बिल भी अटका हुआ है, विपक्ष मौन है और आदिवासी समाज के लिए यह समस्या ही नहीं है, जबकि इससे सबसे ज्यादा ग्रसित आदिवासी समाज ही है। इनमें 78 प्रतिशत आदिवासी, 12 प्रतिशत एससी, 08 प्रतिशत ओबीसी और 02 प्रतिशत सामान्य वर्ग के लोग हैं। झारखण्ड में मानव तस्करी इसलिए बढ़ रहा है क्योंकि कि दलालों और मानव तस्करों को सजा नहीं हो रही है और अधिकांश केस में अपने ही लोग अपनों को बेच रहे हैं। अधिकांश केस में लोग डर से या अन्य वजहों से केस ही नहीं दर्ज करते हैं, इसी वजह से सरकारी रिकॉर्ड में बहुत कम मामले सामने आते हैं।
मानव तस्करी झारखण्ड के लिए एक अभिशाप है और सबसे ज्यादा इसके शिकार बच्चे हो रहे हैं। राजनीतिक दलों के लिए यह इस लिए मुद्दा नही बन रहा है, क्योंकि बच्चे वोट बैंक नही हैं? विडम्बना यह है कि जल, जंगल और जमीन बचाने के लिए सब एक साथ खड़े हो रहे हैं, लेकिन अपनी बहन, बेटी और बच्चों को बचाने कोई नही आगे आ रहा है।
यह भी पढ़ें : परीक्षा पे चर्चा 2.0 / जिंदगी का मतलब ठहराव नहीं, जिंदगी का मतलब है ‘गति’
बैद्यनाथ इसलिए कहे जाते हैं बजरंगी भाईजान!
- बैद्यनाथ ने 1994-2001 रांची एटीआई के मेस में काम किया।
- 2002-2016 नौं महिलाओं और दो पुरुषों के साथ दिया ‘नामक’ एक गैर सरकारी संगठन (एनजीओ) की शुरुआत की।
- 2006-2008 एटसेक और बचपन बचाओ संस्था के साथ लापता बच्चों के रेस्क्यू ऑपरेशन में साथ दिया जिससे 212 बच्चों की फैमिली को सरकार की कई योजनाओं का लाभ मिला।
- 16 मई, 2012 झारखण्ड में डीएसएस के साथ मिल कर पहला मानव तस्करी का केस सुलझाया।
- 25 दिसंबर 2012 बैद्यनाथ ने मानव तस्करी से लिप्त 240 प्लेसमेंट ऐजेंसियों और 36 किंग पिन की सूची भी तैयार की जो 2012 में सीआईडी के कार्यवाही का आधार बनी । इसी आधार पर बैद्यनाथ ने सीआईडी के अधिकारीयों के साथ मिलकर दिल्ली में एक रेस्क्यू ऑपरेशन चलाया।
- 2016 से अब तक इंटरप्रेन्योरशिप डेवलपमेंट इंस्टिट्यूट सोशल सर्विसेज (ईडीआईएसएस) बाल सुरक्षा के मामले में टेकनिकल सपोर्ट दे रहे हैं।
- बैद्यनाथ ने रांची में बाल विवाह के ऊपर पहला एफ़आईआर दर्ज़ करवाया। अब तक विभिन्न थानों में मानव तस्करों के विरुद्ध 180 मामले दर्ज कराये हैं जिनमें से 50 मामले उन्होंने स्वयं अपने नाम से दर्ज कराये हैं।
- बैद्यनाथ ने अब तक 40 मानव तस्करों और 30 किंग पिन को गिरफ्तार करवाया। कई बार इन्हें जान से मारने की धमकी भी मिल चुकी है।
- झारखंड में प्रोटेक्शन ऑफ़ चिल्ड्रेन फ्रॉम सेक्सुअल ओफ्फेंसस 2012, के इम्प्लीमेंटेशन को लेकर कई पीआईएल फाइल किया।
- बाल सुरक्षा से संबंधित कई राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय सेमिनार में मौजूद रहे।
यह भी पढ़ें : प्रिंसिपल की अनोखी पहल, बच्चों के ‘स्कूल बैग का वजन’ ऐसे किया कम!
झारखंड में ह्युमन ट्रैफिकिंग के आंकड़े
- बैद्यनाथ के अनुसार हर साल झारखण्ड से तक़रीबन 30,000 लड़के-लड़कियों की तस्करी होती है, वह बताते हैं कि साल में दो बार दिल्ली में तस्करों का मेला सजता है और फिर तस्करी की शिकार इन लड़कियों के साथ दुष्कर्म होता है।
- झारखण्ड में ट्रैफिकिंग का शिकार होने वालों में 87 प्रतिशत नाबालिग लड़के-लडकियां हैं, जिनमें से महिलाएं 90 प्रतिशत से भी अधिक हैं। बांग्लादेश बॉर्डर से लगा झारखण्ड का पाकुड़ और और साहेबगंज इलाका (पत्थलगड़ी) अब लड़कियों की तस्करी (ट्रैफिकिंग) का नया गढ़ बन चूका है।
- नेशनल क्राइम रिकार्ड्स ब्यूरो के अनुसार 2013 से 2017 तक झारखण्ड में ह्युमन ट्रैफिकिंग के 2489 मामले दर्ज हुए हैं और महज 1405 को ही छुड़ाया गया है।
- सीआईडी की रिपोर्ट के अनुसार 2017 में झारखण्ड में 255 नाबालिग ट्रैफिकिंग का शिकार हो चुके हैं जिनमें से 164 बच्चों को रेस्क्यू किया जा चूका है।
यह भी पढ़ें…
- अमेरिका / ‘सत्ता से मोह और हार का हंगामा’, अंत में मिल रही, ‘निंदा’
- किसान आंदोलन / ‘अधर’ में संवाद, सरकार की ‘मनमानी’ और किसानों का ‘धरना’
- तलाश / लोग तीर्थयात्रा पर क्यों जाते हैं?
- स्व-प्रेरणा / जिंदगी को संतुलित रखने का ये है आसान तरीका
- अमेरिका / नया विवाद, स्कूलों में ‘योग’ पर प्रतिबंध की मांग
- किसान आंदोलन / संवाद की कमी, किसानों की जिद, नेताओं की मनमानी
(आप हमें फेसबुक, ट्विटर, इंस्टाग्राम, लिंक्डिन और यूट्यूब पर फ़ॉलो भी कर सकते हैं।)
Be First to Comment