कोरोनावायरस संक्रमण से दुनिया बेहाल है। इस बेहाली को नवाचार में बदलते हुए, काफी लोग बहुत कुछ कर रहे हैं। ऐसा ही कुछ ग्वाटेमाला के शिक्षक ने किया। मार्च 2020 से यहां स्कूल बंद हैं। बच्चों की पढ़ाई प्रभावित ना हो इस बात को देखते यहां के शिक्षक जेरार्डो इवांको ने अपनी बचत से ट्राइसाइकिल में निवेश किया और घर-घर जाकर बच्चों को पढ़ाना शुरू किया।
जेरार्डो ने ट्राइसाइकिल पर एक वायरलेस ट्रांसमिशन और व्हाइटबोर्ड लगाया है। इसे धूप से बचाने के लिए प्लास्टिक शीट है, तो प्लास्टिक शीट के ऊपर सोलर प्लेट जो ट्राइसाइकिल में लगी बैटरी को ऊर्जा देती है, जिससे ट्राइसाइकिल में लगा साउंड चलता है। यह ट्राइसाइकिल एक तरह से क्लासरूम का काम करती है।
ग्वाटेमाला में हुआ यह प्रयोग नया है या पुराना इसका दावा नहीं किया जा सकत है। लेकिन यह नवाचार उन देशों में काफी लाभ दे सकते जहां गरीबी बेहद ज्यादा है। लोग ऑनलाइन एजुकेशन को आम दिनचर्या में शामिल नहीं कर सकते।
भारत में क्यों नहीं?
भारत में जहां 80 करोड़ से ज्यादा (भारत सरकार के मुताबिक) लोग ऐसे हैं, जिनके पास खाने के लिए भी रुपए नहीं। उनके बच्चों के लिए ये स्कूल वरदान की तरह काम कर सकते हैं। ऑनलाइन एजुकेशन में मोबाइल/लैपटॉप/नोटपेड/कम्प्यूटर की बड़ी भूमिका होती है। देश के 80 करोड़ (तथाकथित) से ज्यादा लोगों के लिए ऐसी योजनाएं शुरू करने की पहल सरकार को करनी चाहिए।
हालही में मध्यप्रदेश (अन्य राज्यों) में स्कूल और कॉलेजों/विवि के विद्यार्थियों को आगे की कक्षाओं में प्रमोट किया गया। संकट के समय इस तरह की परिस्थितियों में विद्यार्थियों के मूल्यांकन के कई विकल्प हो सकते थे? इसके अलावा स्नात्कोत्तर कर रहे विद्यार्थियों के अंतिम सेमेस्टर में घर बैठे ऑनलाइन एग्जाम का विकल्प भी पूरी तरह से निराधार है। यह शिक्षा पद्धिति का दुरुपयोग है।
यहां ऑनलाइन एजुकेशन पर सवाल?
पिछले दिनों ऑनलाइन शिक्षा और परीक्षा का दिल्ली विश्वविद्यालय के अलावा देश के कई बड़े शिक्षण संस्थानों में विरोध हुआ। गिरफ्तारियां भी हुईं। कहा गया कि ऑनलाइन एग्जाम के लिए विद्यार्थी मानसिक तौर पर तैयार नहीं। कई मीडिया रिपोर्टस में यह बात विस्तार से कही गई। इस दौरान स्टूडेंट्स ने भी बताया कि ऑनलाइन एजुकेशन/एग्जाम को धरातल पर लागू करने से क्या-क्या समस्याएं आती हैं?
सवाल कई हैं, जिनके जवाब केंद्र/राज्य सरकार कोरोना काल में नहीं दे रही है और शायद कोरोना काल के बाद भी ना दे? मौजूदा स्थितियां ये हैं कि शिक्षकों/प्राध्यापकों के पास ऑनलाइन मीटिंग के लिए संस्थागत लाइसेंस तक नहीं हैं। कोई स्पष्ट निर्देश नहीं हैं। ऑनलाइन एजुकेशन कैसे दी जाती है, कोई प्रणाली/रूपरेखा तक नहीं हैं।
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अमीर बच्चों के लिए यह आसान हो सकती है, लेकिन गरीब बच्चों का क्या? और उन बच्चों का क्या जो पिछड़े इलाकों में रहते हैं। वो गांव जहां बिजली तो है लेकिन कब आती-जाती है यह तय नहीं? नेत्रहीन बच्चों के लिए ऑनलाइन शिक्षा कैसे दी जाए, इस बात को लेकर भी कहीं कोई बात नहीं होती है। गरीब बच्चों के लिए मोबाइल के लिए फंड कहां से आएगा। यह भी तय नहीं।
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