हम जो भी हैं, जैसे भी हैं अपनी दिनचर्या, सोचने की क्षमता और अपने द्वारा किए जा रहे कर्मों के कारण ही हैं। दरअसल, हम जहां हैं उसकी वजह खुद होते हैं। दूसरे शब्दों में कहें तो आप अपनी जिंदगी के मुख्य कार्यकारी अधिकारी ‘सीईओ ‘ हैं।
यह आप ही तय करते हैं कि मुझे यह काम बेहद सरल तरीके से करना है तो वह सरल तरीके से ही होता है और बेहद कठिन मानेंगे तो बेहद कठिन ही होगा। किसी भी कंपनी में सीईओ का मुख्य काम होता है कंपनी को सुव्यवस्थित ढंग से चलाना। ठीक इसी तरह आपकी कंपनी आपका शरीर है। इस शरीर के कई पार्ट हैं, एक मस्तिष्क भी है। यह वही सोचेगा जो आप वास्तव में चाहते हैं और उस तरह से आपकी बातों की दिशा निर्धारित करेगा। इस तरह आप जो सोच रहे हैं वो आपके सामने होगा।
एक कहानी हमने बचपन से सुनी है कि वो यह कि महान वैज्ञानिक आइजक न्यूटन जब पेड़ के नीचे बैठे थे तो उनके पास एक सेब गिरा। सेब ऊपर से क्यों गिरा इस सवाल के बारे में जब उन्होंने गहन चितंन किया तो मस्तिष्क ने उन्हें गुरुत्वाकर्षण का नियम की खोजने मदद की। यह एक उदाहरण है, ऐसे कई उदाहरण हमारे आस-पास या अतीत में मौजूद हैं।
फेसबुक के मार्क जुकरबर्ग 23 साल के बेहद कम उम्र में अरबपति बने। उनका मानना है कि जब तक ज़िंदगी में रिस्क नहीं लेंगे, तब तक सफलता नहीं मिल सकती और रिस्क लेने के लिए खुद को बेहतर सीईओ बनना होगा, जो यह साबित कर सके कि आपके शरीर पर पूरी तरह नियंत्रण आप रख सकते हैं।
फीचर फंडा: आप से बेहतर कोई भी आपको नहीं जानता है। ऐसे में आप ही स्वयं के तारणहार हैं और स्वयं के संहारक यह बात सदियों पहले कही गईं, जिन्हें आज फिर से दोहराने की जरूरत है। अपनी जिंदगी के बेहतर सीईओ बनिए और वो दिन दूर नहीं जब आप अपने लक्ष्य के बेहद नजदीक होंगे तब यही बातें आपको ओर भी आगे ले जाने में मदद करेंगी।
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