Photos and Videos Courtesy: Rajesh Bhardwaj
जब कोई पहलवान देश के लिए अवार्ड लेकर आता है, उस समय पूरे देशवाशियों को बड़ी खुशी होती है। आज भारत कुश्ती के खेल में आगे बढ़ रहा है। हमें पहलवानों के साथ-साथ उनके कोच को नहीं भूलना चाहिए क्योंकि जितनी मेहनत हमारे पहलवान करते हैं, उनसे ज्यादा मेहनत उनके कोच करते हैं।
द्रोणाचार्य अवार्ड से पुरस्कृत रामफल मान कोच हैं वह 30 साल से पहलवानों को तैयार कर रहे हैं। 30 साल में रामफल ने अपने घर से ज्यादा समय स्टेडियम में दिया है। कुश्ती के बारे में वह बताते हैं, ‘आज तक सिर्फ यही खेल बचा हुआ है, जिसमे जूनियर अपने सीनियर की इज़्ज़त करते हैं और अपने सीनियर के पैर छूते हैं, बाकी दूसरे खेलो में अब इतनी इज़्ज़त नही करते।
वह बताते हैं कि आजकल नए बच्चे आउटडोर गेम से हटकर इंडोर मे शिफ्ट हो गए है। पहले जो आउटडोर के खेल होते थे कुश्ती, कबड्डी, खो-खो वो सब इंडोर मे शिफ्ट हो गए। उनकी जगह नए गेम आ गए। व्हाट्सएप, फेसबुक, इंस्ट्राग्राम जैसे और कई गेम आ गए हैं। आउटडोर के गेम में एक टाइम होता था सुबह हो या शाम 1 या 2 घंटे खेलते थे। उसके लिए घर वाले अनुमति भी दे देते थे। क्योंकि माता पिता को पता होता था कि हमारे बच्चे 1,2 घंटे खेलकर घर वापिस आ जाएंगे।
‘कुश्ती के क्षेत्र में हमारे पहलवानों ने शुरू से ही बड़ी मेहनत की हैं सुबह 4 बजे उठकर अपनी प्रैक्टिस करते थे। सर्दी, गर्मी या बरसात उनके लिए कोई मायने नही रखता था। उनका एक ही टारगेट होता था सुबह हमे 4 बहे अखाड़े में पहुचना है, नही तो गुरुजी गुस्सा करेंगे।’
लेकिन इंडोर गेम का कोई टाइम नही होता जब तक आपके फ़ोन में इंटरनेट का डाटा है, तब तक आप खेलते रहते हैं। हमारे हिंदुस्तान के खिलाड़ी बहुत अच्छा खेलते है इसमें कोई शक नही। ओलंपिक में मैडल भी लेकर आते है। देश का नाम भी रोशन करते हैं। हम सब देशवाशियों को उन पर गर्व होता है। सरकार की सुविधा के हिसाब से मैडल लेकर आते हैं। कम सुविधा मिलती है, कम मेडल लेकर आते हैं। अगर ज्यादा सुविधा मिलें तो ज्यादा मेडल लेकर आ सकते है, लेकिन जब कोई खिलाडी मेडल जीतकर आता है तो कुछ सालों तक हम उसको स्टार बना कर रखते है। वो खिलाडी अपने खेल को भूल जाता है, जिसके लिए उसको मेडल मिला था।
अगले ओलंपिक आने पर तब उस खिलाडी को याद आता ही की मुझे अपने खेल के लिए भी समय निकालना है, क्योकि ओलंपिक शुरू होने वाला है। क्योंकि कुछ साल तो उस खिलाडी ने पार्टियों में निकाल दिए, लेकिन जब तक वो खिलाडी अपने खेल के बारे में सोचता है, तब तक राजनीति का खेल शुरू हो जाता है। क्योकि नेताओं के पास सिफारशें आने लग जाते है। खिलाड़ियों का ध्यान अगर खेल पर ही रहे तो शायद मेडलों की संख्या बढ़ सकती हैं।
‘रामफल को सबसे ज्यादा उस समय खुशी होती है, जब कोई पहलवान अवार्ड लेकर आता है, उस समय रामफल को लगता है कि अब मेरी मेहनत सफल हो गई है।’
सोशल मीडिया से पता चल जाता है। आजकल हमारे खिलाडी कितने खेलों मे बिजी है कितने पार्टीयो में। कुश्ती के क्षेत्र में हमारे पहलवानों ने शुरू से ही बड़ी मेहनत की हैं सुबह 4 बजे उठकर अपनी प्रैक्टिस करते थे। सर्दी, गर्मी या बरसात उनके लिए कोई मायने नही रखता था। उनका एक ही टारगेट होता था सुबह हमे 4 बहे अखाड़े में पहुचना है, नही तो गुरुजी गुस्सा करेंगे पहले अपने कोच को हर पहलवान गुरुजी का दर्जा देता था।
रामफल को सबसे ज्यादा उस समय खुशी होती है, जब कोई पहलवान अवार्ड लेकर आता है, उस समय रामफल को लगता है कि अब मेरी मेहनत सफल हो गई है। आज के समय अगर हम गुरु शिष्य का रिश्ता देखना है, तो वो सिर्फ कुश्ती में बचा हुआ है, बाकी किसी भी खेल में ऐसा रिश्ता अब नहीं है!
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