Pic Courtesy: Vikas Anand /Ayodhya
अयोध्या यानी श्रीराम की नगरी। श्रीराम ने त्रेतायुग में उन आदर्शों से साक्षात्कार करते हुए वो प्रतिमान स्थापित किए जिससे कारण वो भगवान कहलाए। पौराणिक कहानियां बताती हैं कि श्रीराम, भगवान श्री विष्णु के अवतार थे। विष्णु को सृष्टि के पालनहार कहा गया है।
श्री राम भगवान हैं और रहेंगे। इसमें कोई दो राय नहीं लेकिन राम की जन्मभूमि अयोध्या में पिछले कई दशकों से जो विवाद चल रहा था अब उस पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद विराम लग चुका है। ये विराम अयोध्या के विकास के लिए उतना ही जरूरी है जितना जरूरी है वहां रहने वाले हर मजहब के परिवार की मूलभूत आवश्यकताएं।
ये वो धार्मिक शहर है जिसके इतिहास के पन्नों को आप पलटेंगे तो यहां हिंदू, मुस्लिम, जैन, बौद्ध और सिख धर्म की उन गाथाओं को आप जानेंगे जो भले ही इतिहास है लेकिन वर्तमान में आज भी उतनी ही प्रासंगिक है जितनी कि पहले थीं। समय का चक्र चलता रहा और चीजें बदलती गईं।
मप्र के इंदौर में जन्में इलाहाबाद विश्वविद्यालय के पूर्व विभागाध्यक्ष (इतिहास) प्रोफेसर हेरम्ब चतुर्वेदी बताते हैं कि बेंटली एवं पार्जिटर जैसे विद्वानों ने ‘ग्रह मंजरी’ आदि प्राचीन भारतीय ग्रंथों के आधार पर अयोध्या स्थापना का काल ई.पू. 2200 के आसपास है। इस वंश में राजा राम के पिता दशरथ 63वें शासक थे। जैन परंपरा के अनुसार भी 24 तीर्थंकरों में से 22 इक्ष्वाकु वंश के थे। इन 24 तीर्थंकरों में से भी सर्वप्रथम तीर्थंकर आदिनाथ (ऋषभदेव ) के साथ चार अन्य तीर्थंकरों का जन्मस्थान भी अयोध्या ही है। बौद्ध मान्यताओं के अनुसार बुद्ध देव ने अयोध्या या साकेत में 16 साल तक निवास किया था।
सृष्टि के प्रारम्भ से त्रेतायुगीन रामचंद्र से लेकर द्वापरकालीन महाभारत और उसके बहुत बाद तक हमें अयोध्या के सूर्यवंशी इक्ष्वाकुओं के उल्लेख मिलते हैं। इस वंश का बृहद्रथ, अभिमन्यु के हाथों ‘महाभारत’ के युद्ध में मारा गया था। फिर श्रीराम के पुत्र लव ने श्रावस्ती बसाई और इसका स्वतंत्र उल्लेख अगले 800 साल तक मिलता है। फिर यह नगर मगध के मौर्यों से लेकर गुप्तों और कन्नौज के वंश शासकों के अधीन रहा। अंत में यहां महमूद गजनी के भांजे सैयद सालार ने तुर्क शासन की स्थापना की। वो बहराइच में 1033 ई. में मारा गया।
इसके बाद तैमूर के बाद जब जौनपुर में शकों का राज्य स्थापित हुआ तो अयोध्या शर्कियों के अधीन हो गया। विशेषतौर से शक शासक महमूद शाह के शासन काल में 1440 ई. के दौरान, फिर 1526 ई. में बाबर ने मुगल राज्य की स्थापना की और उसके सेनापति ने 1528 में यहां आक्रमण करके मस्जिद का निर्माण करवाया जो 1992 में मंदिर-मस्जिद विवाद के चलते रामजन्मभूमि आंदोलन के दौरान ढहा दी गई। अब सुप्रीम कोर्ट का फैसला की ‘मंदिर वहीं बनेगा और मस्जिद के लिए 5 एकड़ जमीन अयोध्या में अलग से ही दी जाएगी’ के बाद इस विवाद पर विराम लग चुका है।
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रामजन्मभूमि विवाद खत्म होने के बाद अयोध्या में विकास एक ऐसा मुद्दा है जो अब बेहद जरूरी है। अनमोल अयोध्या में रहते हैं। वो बताते हैं कि यहां सबसे बड़ा मुद्दा रोजगार का है। यहां रहने वाले हर धर्म के लोग रोजगार चाहते हैं। मंदिर-मस्जिद की बात पुरानी हो चुकी है। लोग शांति से रहते हैं। सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने के बाद लोगों में शांति थी। वह इसलिए कि अब हमारा अयोध्या विकास की राह में अग्रसर होगा। यहां कभी हिंदू-मुस्लिम मुद्दा रहा ही नहीं, राजनीतिक प्रपंच के कारण इसके ज्वलनशील बनया गया।
अयोध्या में स्थानीय पत्रकार आदित्य तिवारी बताते हैं कि उन्होंने कई लोगों से बात की तो उनका कहना था कि फैसला बेलेंस्ड है। फैसले के बाद अब अयोध्या में रोजगार बढ़ेगा। इंफ्रास्ट्रक्चर बेहतर होगा। पर्यटन के लिहाज से भी अयोध्या काफी विकसित होगा। 24 घंटे में अप्रिय घटना नहीं हुई। सरयु किनारे स्नान करते हुए लोग तनाव में नहीं। इस दौरान मुद्दैय इकबाल अंसारी आधे घंटे दरवाजा मीडिया कर्मी से कहा सुप्रीम कोर्ट का फैसला मान्य करने की अपील की।
अयोध्या से ही विकास आनंद बताते हैं यकीन है अब अयोध्या में जो ट्रस्ट बनेगा और जिस तरह वैष्णो देवी ट्रस्ट, शिरडी ट्रस्ट है ठीक इसी तरह ये ट्रस्ट यहां मंदिर और अयोध्या के विकास की राह को आसान करेगा, तो वहीं रंजीत बताते हैं कि पर्यटन और रोजगार यहां के दो मुख्य मुद्दे हैं। सुप्रीम कोर्ट के फैसले का मुस्लिम वर्ग खुलकर समर्थन कर रहे हैं। अयोध्या में अब विकास चाहिए।
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