- डॉ. वेदप्रताप वैदिक।
अपने 71 वें वर्ष में भारत का गणतंत्र खुद पर गर्व करे या चिंता करे? मैं सोचता हूं कि वह दोनों करे। गर्व इसलिए करे कि अगर हम एशिया और अफ्रीका के देशों पर नज़र डालें तो हमें मालूम पड़ेगा कि उन सब में भारत बेजोड़ देश है।
इन लगभग सभी देशों के संविधान तीन-तीन चार-चार बार बदल चुके हैं, इन ज्यादातर देशों में कई बार तख्ता-पलट हो चुके हैं, इनमें कई लोकतंत्र फौजतंत्र बन चुके हैं और फौजतंत्र लोकतंत्र बनने की कोशिश कर रहे हैं, कई देश संघात्मक से एकात्मक और एकात्मक से संघात्मक बनने लगे हैं लेकिन भारत का संविधान है कि सत्तर साल गुजर जाने पर भी ज्यों का त्यों है।
उसके मूल स्वरुप में कोई बदलाव नहीं हुआ है। सन् 1975-77 के आपातकाल ने जरुर इस प्रक्रिया में हस्तक्षेप किया था लेकिन भारत की जनता ने हस्तक्षेप करनेवालों को कड़ा सबक सिखाया था। हमारे संविधान में लगभग सवा सौ संशोधन हो गए हैं। लेकिन उसका मूल स्वरुप अक्षुण्ण हैं। उसके संशोधन उसके लचीले होने का प्रमाण हैं।
दूसरी बात जो गर्व के लायक है, वह यह कि आजादी के बाद देश के पूर्व, पश्चिम, उत्तर और दक्षिण में कई राज्य भारत से अलग होना चाहते थे। लेकिन आज नागालैंड, पंजाब, कश्मीर और तमिलनाडु में ऐसी कोई आवाज सुनाई नहीं पड़ती। भारत की संपन्नता, शक्ति और एकता पहले से अधिक बलवती हो गई है। यों भी भारत दक्षिण एशिया का सबसे बड़ा देश है लेकिन अब चीन और भारत- एशिया के दो महाशक्ति राष्ट्र माने जा रहे हैं।
भारत इस पर गर्व कर सकता है लेकिन सत्तर या बहत्तर साल गुजरने के बावजूद भारत में गरीबी, बेरोजगारी, अशिक्षा और भ्रष्टाचार का बोलबाला है। भारत में आज तक एक भी सरकार ऐसी नहीं बनी है, जिसे जनता का 51 प्रतिशत वोट मिला है।
- समाधान / अरेंज या लव, कौन-सा विवाह है सबसे बेहतर
- स्व-प्रेरणा / जिंदगी को संतुलित रखने का ये है आसान तरीका
वर्तमान सरकार भी सिर्फ 37 प्रतिशत वोटों से बनी सरकार है। भारत की चुनाव पद्धति में बुनियादी सुधार की जरुरत है। पार्टियों में आंतरिक लोकतंत्र का अभाव होता जा रहा है। देश में भय, आतंक और अविश्वास बढ़ रहा है। करोड़ों नागरिकों की बुनियादी जरुरतें पूरी नहीं हो पातीं और मुट्ठीभर लोग सपन्नता के हिमालयों पर चढ़ते चले जा रहे हैं। इसीलिए हमारा गणतंत्र गर्वतंत्र होते हुए भी चिंतातंत्र बना हुआ है।
- लेखक, राजनीतिक विश्लेषक, अंतरराष्ट्रीय मामलों के स्तंभकार हैं। वह भारतीय विदेश नीति परिषद और भारतीय भाषा सम्मेलन के अध्यक्ष हैं।
Support quality journalism – Like our official Facebook page The Feature Times
Be First to Comment