पिछले दो दशकों में, पृथ्वी ग्रह के चारों ओर हरियाली में वृद्धि देखी है। यह पेड़ और पौधों पर प्रति वर्ष औसत क्षेत्र से मापा जाता है। नासा के उपग्रहों के डेटा से पता चलता है कि चीन और भारत जमीन पर हरियाली तेजी से बढ़ रही है। इसकी वजह है चीन का महत्वाकांक्षी वृक्षारोपण कार्यक्रम और दोनों देशों में होने वाली कृषि।
पिक क्रेडिट: नासा पृथ्वी वेधशाला
दुनिया सचमुच 20 साल पहले की तुलना में हरियाली की तरफ बढ़ रही है। नासा के उपग्रहों के अधिकांश डेटा में भारत और चीन को इस पहल के लिए सराहा गया है। रिसर्च से पता चलता है कि दुनिया की सबसे बड़ी आबादी वाले दो उभरते देश अपनी भूमि पर हरियाली में वृद्धि का नेतृत्व कर रहे हैं।
साल 1990 के दशक के मध्य में व्यवस्थित तरह से हरियाली पर रिसर्च बोस्टन विश्वविद्यालय के रंगा मायनेनी द्वारा शुरु किया गया। जहां उपग्रह से मिले डेटा का उपयोग करके पृथ्वी पर हरियाली के बारे में पता लगाया गया। नए डेटा को नासा के दो उपग्रहों ने लगभग 20 साल लंबे डेटा रिकॉर्ड से संभव बनाया है। इसे मॉडरेट रिज़ॉल्यूशन इमेजिंग स्पेक्ट्रोमाडोमीटर या MODIS कहा जाता है, और इसका उच्च रिज़ॉल्यूशन डेटा बहुत सटीक जानकारी प्रदान करता है, जिससे शोधकर्ताओं को यह पता लगाने में मदद मिलती है कि पृथ्वी पर सबसे ज्यादा वनस्पति कहां है।
ची चेन मैसाचुसेट्स में बोस्टन विश्वविद्यालय में पृथ्वी और पर्यावरण विभाग और इस रिसर्च के प्रमुख लेखक हैं वह कहते हैं, ‘चीन और भारत में हरियाली का एक तिहाई हिस्सा है, लेकिन पृथ्वी के केवल 9% भू-भाग में वनस्पतियों का समावेश है। ये एक आश्चर्यजनक खोज है जो अत्यधिक आबादी वाले देशों में भूमि क्षरण की सामान्य धारणा को दिखाता है।’

कैलिफोर्निया के सिलिकॉन वैली में नासा के एम्स रिसर्च सेंटर के शोध वैज्ञानिक और रिसर्च के सह-लेखक राम नेमानी बताते हैं, ‘यह दीर्घकालिक डेटा हमें गहरी जानकारी देता है। जब पृथ्वी की हरियाली पहली बार देखी गई थी, तो हमने सोचा कि यह वायुमंडल में एक गर्म वातावरण, आर्द्र जलवायु के कारण है, उदाहरण के लिए, उत्तरी जंगलों में अधिक हरियाली के विकास के लिए ये हो सकता है, लेकिन अब, MODIS डेटा के साथ जो हमें वास्तव में छोटे पैमानों पर घटना को समझने में सहायता कर रहा है, हम देखते हैं हरियाली के लिए इसमें मनुष्य भी अपना योगदान दे रहा है।’
वनों के संरक्षण और विस्तार के लिए वैश्विक हरियाली की प्रवृत्ति में चीन का बाहरी योगदान बड़े हिस्से (42%) में आता है। ये मृदा अपरदन, वायु प्रदूषण और जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम करने के प्रयास में विकसित किए गए थे। वहां एक और 32% और भारत में देखी जाने वाली 82% हरियाली खाद्य फसलों की गहन खेती से आती है।
चीन और भारत दोनों में ही फसल के लिए 770,000 वर्ग मील से अधिक भूमि क्षेत्र का उपयोग हो हो रहा है। हालांकि 2000 के दशक की शुरुआत से बहुत कुछ नहीं बदला है। फिर भी इन क्षेत्रों ने अपने वार्षिक कुल हरियाली क्षेत्र और उनके खाद्य उत्पादन दोनों में बहुत वृद्धि की है। एक खेत को वर्ष में कई बार दूसरी फसल का उत्पादन करने के लिए दोहराया जाता है। अनाज, सब्जियों, फलों का उत्पादन में 2000 के बाद से लगभग 35-40% की वृद्धि हुई है।
राम नेमानी बताते हैं कि, ‘भविष्य में पृथ्वी पर वैश्विक स्तर और स्थानीय मानव स्तर पर हरियाली की प्रवृत्ति कैसे बदल सकती है यह कई कारणों पर निर्भर करता है। उदाहरण के लिए, भारत में बढ़े हुए खाद्यान्न उत्पादन से भूजल सिंचाई की सुविधा मिलती है। यदि भूजल समाप्त हो जाता है, तो यह प्रवृत्ति बदल सकती है। लेकिन, अब जब हम जानते हैं कि बड़े स्तर पर मानव द्वारा पृथ्वी पर हरियाली के लिए किया जा रह कार्य एक प्रमुख सकारात्मक परिवर्तन है, तो हमें इसे अपने जलवायु मॉडल में बदलने की जरूरत है। यह वैज्ञानिकों को विभिन्न पृथ्वी प्रणालियों के व्यवहार के बारे में बेहतर भविष्यवाणियां करने में मदद करेगा, जो देशों को कार्रवाई करने और कैसे करने के बारे में बेहतर निर्णय लेने में मदद करेगा।’

शोधकर्ता बताते हैं कि दुनिया भर में देखी जाने वाली हरियाली और भारत और चीन के वर्चस्व वाली हरियाली का लाभ उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों, जैसे कि ब्राजील और इंडोनेशिया में पारिस्थितिक तंत्रों में स्थिरता और जैव विविधता के परिणाम देखे गए हैं।
कुल मिलाकर, नेमानी का कहने का आशय यह है कि, ‘एक बार जब लोगों को समस्या का एहसास होता है, तो वे इसे ठीक करते हैं। भारत और चीन में 70 और 80 के दशक के दौरान वनस्पति हानि और आसपास की स्थिति अच्छी नहीं थी। 90 के दशक में लोगों को इसका अहसास हुआ और आज हालात सुधरे हैं। मनुष्य अविश्वसनीय रूप से लचीला है। उपग्रह डेटा में हम यही देखते हैं।’
नोट: यह रिसर्च अमेरिका की नेचर सस्टेनेबिलिटी नाम की मैगजीन में 11 फरवरी, 2019 को ऑनलाइन प्रकाशित किया गया था।
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