वर्तमान में भारत अपने सार्वजनिक स्वास्थ्य खर्च पर कुल सकल घरेलू उत्पाद (GDP) का 1% से खर्च करता है, राष्ट्रीय स्वास्थ्य प्रोफाइल (एनएचपी) 2018 के डाटा में इस बात का खुलासा हुआ है। हालांकि इस साल के सरकारी आंकड़ों में 0.98% से मामूली सुधार हुआ है। साल 2014 में भारत की स्वास्थ्य सेवा प्रणाली की स्थिति बेहद निराशाजनक थीं।
गौर करने वाली बात यह है कि हमारे पड़ोसी देश जैसे भूटान (2.5%) और श्रीलंका (1.6%) जैसे कम आय वाले पड़ोसी देश स्वास्थ्य सेवाओं पर अपनी GDP का भारत की स्वास्थ्य सेवा पर खर्च की जाने वाली जीडीपी की तुलना में एक बड़ा हिस्सा खर्च करते हैं।
11,082 लोगों के लिए सिर्फ एक डॉक्टर
TOI की रिपोर्ट के बावजूद भारत की प्रति व्यक्ति स्वास्थ्य व्यय 2009-10 में 621 रुपए से बढ़कर 2015-16 में 1,112 हो गई है, यह कई अन्य देशों की तुलना में कम है। आपके बता दें कि एनएचपी देश में जनसांख्यिकीय, सामाजिक-आर्थिक, स्वास्थ्य स्थिति और संसाधनों को उजागर करने वाले आंकड़ों का वार्षिक संकलन करती है। यह रिपोर्ट 2005 से हर साल प्रकाशित की जा रही है।
‘2015-16 में स्वास्थ्य पर भारत की प्रति व्यक्ति सार्वजनिक व्यय 621 रुपए से बढ़कर 2015-16 में 1,112 रुपए (वर्तमान विनिमय दर पर लगभग 16 डॉलर) हो गई है।’
केंद्र ने राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति 2017 में घोषणा की थी कि सरकार 2025 तक अपने सार्वजनिक स्वास्थ्य व्यय को 2.5% तक बढ़ाने जा रही है। इतना ही नहीं, रिपोर्ट में कहा गया था कि भारत में डॉक्टरों की कमी है। देश के गांवों में 11,082 लोगों के लिए सिर्फ एक एलोपैथिक डॉक्टर है। यह आंकड़ा 1: 1000 के डब्ल्यूएचओ निर्धारित अनुपात से 10 गुना भी खराब है।
तो वहीं, एनएचपी (2018) के अनुसार, 2016-17 में केवल 43 करोड़ व्यक्तियों या 34% आबादी को किसी भी स्वास्थ्य बीमा के तहत कवर किया गया था।
‘कम आय वाले परिवार होंगे शामिल
एनएचपी लॉन्च करते समय स्वास्थ्य मंत्री जेपी नड्डा ने कहा कि राष्ट्रीय स्वास्थ्य संरक्षण योजना स्वास्थ्य पर ‘जेब व्यय से बाहर’ लाएगी। इस योजना को ‘मॉडिकेयर’ के नाम से जाना जाता है। यह दुनिया की सबसे बड़ी सरकारी स्वास्थ्य देखभाल योजना है। दरअसल, ‘मॉडिकेयर’ यह एक कैशलेस सुविधा है यानी अस्पताल में भर्ती होने पर मरीज को इलाज के लिए कोई भी भुगतान कैश में नहीं करना होगा। उनके इलाज पर होने वाले 5 लाख रुपए तक का खर्च सरकार उठाएगी। इस योजना के लाभार्थी देश में कहीं भी पैनल में शामिल किसी भी प्राइवेट या सरकारी अस्पताल में इलाज करा सकते हैं।
‘नेशनल हेल्थ प्रोफाइल (2018) के अनुसार, 2016-17 में लगभग 43 करोड़ व्यक्तियों या 34% आबादी को किसी भी स्वास्थ्य बीमा के तहत कवर किया गया था।’
हालांकि, रिपोर्ट ‘जेब व्यय’ के बारे में बात नहीं करती है जिसे रोगियों को खुद को सहन करना पड़ता है। डब्ल्यूएचओ की स्वास्थ्य वित्तपोषण प्रोफाइल 2017 के अनुसार, जबकि ‘जेब व्यय’ से बाहर होने वाली विश्व औसत 18.2% है, भारत 67.78% पर है।
पब्लिक हेल्थ फाउंडेशन ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक 54 मिलियन से अधिक भारतीयों को हर साल गरीबी में धकेल दिया जाता है क्योंकि वे अस्पताल और उपचार लागत सहित अपनी स्वास्थ्य देखभाल को निधि देते हैं। इस बीच भारत 38 मिलियन गरीबी रेखा से नीचे गिर गया है सिर्फ इसलिए कि गरीबों को दवा पर खर्च करना पड़ रहा है।
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