भारतीय जनता पार्टी जिसे लोग बीजेपी भी कहते हैं। ये दावा करते हैं कि इनकी पार्टी दुनिया की सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी है। इसी बड़ी पार्टी के एक बड़े नेता हैं कैलाश विजयवर्गीय जिन्होंने हालही में कहा कि उनके घर पर निर्माण कार्य करने वाले कुछ मजदूरों के बांग्लादेशी होने की संभावना थी क्योंकि उनके पास खाने की ‘अजीब’ आदतें थीं और वे केवल ‘पोहा’ (चपटा चावल) खा रहे थे।
इसके बाद मामला ट्वीटर पर पहुंचा। लोग ट्विटर पर पोहा हैशटेग के जरिए नेता जी अपने अपने तरीके से सलाह, मशवरा या आलोचना कर रहे हैं। लेकिन कैलाश विजयवर्गीय पोहा के सामने काफी छोटे हैं। पोहा उनके जन्म के पहले भी था और बाद में भी रहेगा। बात अगर पोहा की करें तो यह यह एक ऐसी डिश है जो महाराष्ट्र, गुजरात और एमपी में बड़े ही चाव से खाई जाती है। इसमें भी इंदौरी पोहा तो विश्वप्रसिद्ध है।
पोहे को कई नामों से जाना जाता है। महाराष्ट्र और मध्यप्रदेश में इसे पोहे के नाम से ही जाना जाता है। पोहे को पीटा चावल और चपटा चावल के नाम से भी जाना जाता है। तेलगु में अटुकुलू, बंगाल और असम में इसे चीडा, बिहार- झारखंड के क्षेत्रों में इसे चिउरा या चूड़ा और गुजराती में इसे पौआ के नाम से लोग पहचानते है।
इसे हर जगह अलग-अलग तरीके से बनाया जाता है। कई जगह इसे दूध के साथ चीनी मिलाकर खाया जाता है जिसे दूध-पोहा कहा जाता है। तो वहीं केरल में इसे नारियल और केले के साथ बनाया जाता है। साथ ही कई जगह इसे तल कर चिवड़े के रूप में भी बनाकर खाया जाता है। बिहार में, खासकर मिथिला इलाके में दही के साथ चूड़ा खाना बहुत पसंद किया जाता है। मगध के इलाकों में चूड़ा को सत्तू के साथ भी खाया जाता है।
अमूमन लोग कार्न फ्लेक्स से पोहे की तुलना करते हैं, जिसे दूध के साथ खाया जाता है। कुछ लोग मानते हैं कि कार्न फ्लेक्स की खोज करने वाले किलोग्स बंधुओं ने ही इसकी खोज की होगी। लेकिन इसका इतिहास उससे भी कहीं पुराना है।
पौराणिक किंवदंतियों के अनुसार, सुदामा जब कृष्ण से मिलने द्वारका गए थे, तब वो अपने साथ पोहा ही लेकर गए थे। टाइम्स ऑफ़ इंडिया की एक रिपोर्ट के मुताबिक, 1846 में जब भी भारतीय सैनिकों को पानी के जहाज के जरिए कहीं और भेजा जाता था, तब उनके खाने में पोहा हुआ करता था। आजाद भारत में इस पर बैन भी लग चुका है। दरअसल, 1960 में चावल की कमी होने जाने के कारण सरकार को पोहा बनाने पर बैन लगाना पड़ा था।
हर साल 7 जून को पोहा दिवस भी मनाया जाता है। इंदौर का पोहा समेत चार और चीजों के लिए जीआई टैग (ज्योग्राफिकल इंडेक्स टैग) के लिए नाम की सिफारिश की है। जिनमें पोहा, लौंग सेंव, खट्टा-मीठा नमकीन और दूध से बनाई जाने वाली शिकंजी है।
दरअसल, ज्योग्राफिकल इंडेक्स टैग यह एक ऐसे उत्पादों को मिलता है, जिससे की एक जगह की पहचान जुड़ी होती है। इसे मिलने के बाद कोई व्यक्ति या फिर संस्था उसे अपना नहीं बता सकती हैं। तो फिलहाल जो पोहा कैलाश विजयवर्गीय के घर पर निर्माण करने वाले मजूदर खा रहे थे वो चीडा नहीं, बल्कि इंदौरी पोहा ही था।
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