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‘यदि आप एक बाल्टी में सारी दुनिया का पानी एकत्र करें और चाय की छलनी को उस पानी में डुबोएं तो जितना पानी छलनी में होगा उसमें से भी आप एक चम्मच पानी और निकाल लें तो यह पीने का स्वच्छ पानी होगा। इतना ही पानी हमें भूजल, जलाशयों, नदियों, झीलों के रूप में प्रकृति ने दिया है।’
बहरहाल, भारत में पिछले कई साल से कहीं सूखा तो कहीं अतिवर्षा जैसी स्थितियां बन रही हैं। ऐसा होना प्रकृति द्वारा एक भयावह संकेत है। हर साल उत्तर-दक्षिण भारत में पानी की कमी से सूखे की स्थिति तो ज्यादा बारिश से बाढ़ की स्थिति बन जाती है। असम में आई बाढ़ मौसम परिवर्तन की समस्या का ज्वलंत उदाहरण है। जहां लाखों लोग बेघर हो गए, जिन्हें अपना आशियाना बनाने में जिंदगी की जद्दोजहद फिर से शुरू करनी होगी।
पानी दोनों ही स्थितियों में समस्या है ज्यादा है तो ‘बाढ़’ कम है तो ‘सूखा’, लेकिन पीने का ‘साफ पानी’ एक अन्य समस्या है, जो दिनों दिन एक विकराल रूप लेता जा रहा है। यदि समय रहते इन बातों की गंभीरता को परखा नहीं गया तो भविष्य में जल संकट एक विकराल समस्या बनकर भारत ही नहीं पूरे विश्व के सामने आएगा, जिसका निराकरण करना उस वक्त काफी कठिन होगा। हमें समय रहते जल संकट जैसी स्थिति न बने इस बात पर व्यक्तिगत तौर पर सोचना होगा।
2050 के बाद क्या होगा
अनवॉटर आर्गनाइजेशन की साल 2019 में जारी हुई वर्ल्ड वॉटर डपलपमेंट रिपोर्ट कहती है, ‘1980 के बाद से ही जनसंख्या वृद्धि, सामाजिक-आर्थिक विकास के चलते दुनियाभर में पानी का उपयोग प्रतिवर्ष लगभग 1% बढ़ रहा है। वैश्विक जल की मांग वैश्विक जल की मांग 2050 तक एक समान दर से बढ़ती रहने की उम्मीद है। औद्योगिक और घरेलू क्षेत्रों में पानी का उपयोग वर्तमान में 20 से 30% की वृद्धि देखी गई है। पानी की कमी का सामना करने वाले देशों में लगभग 2 बिलियन से अधिक लोग रहते हैं और लगभग 4 बिलियन लोग साल में कम से कम एक महीने के दौरान पानी की गंभीर कमी का अनुभव करते हैं। पानी बढ़ने की मांग बढ़ने से तनाव का स्तर बढ़ता रहेगा और जलवायु परिवर्तन के प्रभाव तेज होंगे।’
जलवायु परिवर्तन एक बड़ा मुद्दा
लोगों के पास पानी कितना है, यह इस बात पर निर्भर करता है कि वो दुनिया के किस देश में रहते हैं। दुनिया की लगभग 60% आबादी एशिया में मध्य पूर्व में रहती है। दुनिया का तीसरा जल भंडारण जो दक्षिण अमेरिका में हैं जहां पिघलती बर्फ है और यहां की आबादी दुनिया की 6% है। दुनिया के अमूमन हर देश में जलवायु परिवर्तन और शहरीकरण बढ़ रहा है।
वर्ल्ड वॉटर डपलपमेंट रिपोर्ट के मुताबिक यूनाइटेड किंगडम (यूके) में हर साल 75 बिलियन क्यूबिक मीटर पानी खर्च होता है, जिसमें 3,400 लीटर प्रति व्यक्ति/प्रति दिन खर्च करता है। इसके वो पानी का उपयोग पीने, खाना बनाने, कपड़े धोने के लिए, शौचालय के अलावा दैनिक उपयोग में करते हैं। लंदन और ब्रिटेन के दक्षिण पूर्व में पानी की मात्रा केवल आधी है। यहां प्रति व्यक्ति/ प्रति दिन 1,700 लीटर पानी खर्च करता है।
…क्या आप ऐसा भविष्य देखना चाहेंगे?
दुनिया में पीने के पानी की समस्या का अनुमान इसी बात से लगाया जा सकता है जैसा कि इथोपिया में बिलेट नदी के किनारे रहने वाले लोगों के साथ हुआ। बिलेट नदी के नजदीक रहने वाले शेह अहमद अलेमु अपनी पत्नी और छह बच्चों के साथ रहते हैं। वो वृद्ध हैं। अलाबा में उनके छोटे से खेत में बाएं किनारे पर तंबाकू, मक्का और अन्य फसलों के जरिए वो आजीविका चलाते थे। 13 साल पहले एक सिंचाई प्रणाली की सहायता लेकर पानी की सिंचाई के लिए कुछ यंत्र लगाए गए थे। हुआ यूं कि लकड़ी और जमीन के लिए लोगों ने जंगल साफ कर दिया, जितने पेड़/पौधे बच गए वो मवेशियों की भूख का निवाला बन गए। जलवायु परिवर्तन के कारण यहां बारिश भी नहीं हुआ और फिर यहां शेह अहमद अलेमु जैसे कई परिवार पीने के पानी के लिए संघर्ष कर रहे हैं।

रिपोर्ट में अलेमु कहते हैं कि ‘मैं पिछले 27 वर्षों से किसान हूं। मैं दस साल से खेतों में सिंचाई के लिए बिलेट नदी के नजदीक बने यंत्र का उपयोग कर रहा था। लेकिन, वर्तमान में हम यह सब कुछ नहीं करते हैं, वजह है यहां पानी की कमी। पीने और खर्च के पानी के लिए हम हर दिन तीन घंटे चलते हैं और बिलेट नदी से पानी लाते हैं यहां बिलेट नदी सूख गई है। हम पानी नहीं खरीद सकते। पानी लाने में इतना समय और कभी-कभी हमें पानी खरीदने में पैसा खर्च करना पड़ता है।‘
5 बिलियन लोगों को कैसे मिलेगा पानी
भू-वैज्ञानिकों का मानना है कि साल 2040 तक दुनिया के 33 देशों में पीने के पानी का संकट बहुत विकराल हो जाएगा, जिनमें भारत और चीन सहित, उत्तरी अफ्रीका, पाकिस्तान, तुर्की, अफगानिस्तान और स्पेन वो देश हैं। तो वहीं, दक्षिणी अफ्रीका, संयुक्त राज्य अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया भी इस समस्या का सामना करेंगें। 2050 तक हर दो सेकंड में एक से अधिक व्यक्ति पानी की चिंता करेगा। वजह है 5 बिलियन लोगों दुनिया की आबादी में शामिल होना और जलवायु परिवर्तन इस समस्या की सबसे गंभीर वजह हैं। 2019 में जारी हुई वाटरएड की यह रिपोर्ट विश्व में जल की स्थिति और विश्व के उन देशों का खुलासा करता है जहां सबसे बड़ी आबादी रहती है और यहां पानी की समस्या दिनों दिन विकराल होती जा रही है। इनमें इथोपिया में पानी की समस्या शुरू हो गई है और यदि समय रहते ठोस कदम नहीं उठाए गए तो भारत में यह समस्या शुरू होने वाली है।
भारत के 21 शहर डे जीरो के हाशिए पर
पिछले साल यानी 2018 में जारी नीति आयोग की रिपोर्ट में कहा गया अगले साल तक 21 भारतीय शहरों के लिए डे जीरो की भविष्यवाणी की गई है। डे जीरो उस दिन को संदर्भित करता है जब किसी स्थान पर अपने स्वयं के पीने के पानी की संभावना नहीं होती है।
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नीति अयोग के समग्र जल प्रबंधन सूचकांक (सीडब्ल्यूएमआई) के अनुसार, बेंगलुरु, चेन्नई, दिल्ली और हैदराबाद अतिसंवेदनशील हैं। सरकार ने पेयजल संकट से निपटने के लिए एक नया जल शक्ति मंत्रालय बनाया है।
भूजल का कौन करता है अधिक दोहन
भारत भूजल का सबसे बड़ा उपयोगकर्ता है। यहां चीन और अमेरिका की तुलना में अधिक भूजल निकाला जाता है। साल 2015 में जल संसाधनों की स्थायी समिति ने पाया कि भूजल भारत की कृषि और पेयजल आपूर्ति का सबसे बड़ा हिस्सा है।

भारत में निकाले जाने वाले भूजल का लगभग 89 प्रतिशत सिंचाई के लिए उपयोग किया जाता है, जो इसे देश का सर्वोच्च श्रेणी का उपयोगकर्ता बनाता है। घरेलू उपयोग में निकाले गए भूजल के 9 प्रतिशत हिस्सा उद्योग आता है जो केवल दो प्रतिशत का उपयोग करता है। कुल मिलाकर, शहरी जल की आवश्यकता का 50 प्रतिशत और ग्रामीण अंचल में 5 प्रतिशत घरेलू पानी की जरूरत पूरी होती है।
नीति आयोग के समग्र जल प्रबंधन सूचकांक के अनुसार, 75 प्रतिशत घरों में पीने का पानी नहीं है और लगभग 84 प्रतिशत ग्रामीण परिवारों के पास पाइप से पानी नहीं है। जहां पाइप के माध्यम से आपूर्ति की जाती है, वहां पानी का वितरण ठीक से नहीं किया जाता है। दिल्ली और मुंबई जैसे मेगा शहरों को अधिक नगरपालिका के जल मानक की तुलना में 150 लीटर प्रति व्यक्ति प्रति दिन (एलपीसीडी) मिलता है, जबकि अन्य को 40-50 एलपीसीडी मिलता है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन सभी बुनियादी स्वच्छता और खाद्य जरूरतों को पूरा करने के लिए एक दिन में एक व्यक्ति को 25 लीटर पानी देता है। डब्लूएचओ के अनुमान के अनुसार, अतिरिक्त उपलब्ध पानी का उपयोग गैर-पीने योग्य प्रयोजनों जैसे कि सफाई के लिए किया जाता है।
हमें इज़राइल से सीखना होगा
वाइल्ड लाइफ इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया के एक सर्वेक्षण से पता चलता है कि देश में गंगा के बाढ़ के मैदानों में 70% ताजे पानी के दलदल और झीलों को खो दिया है, जो देश का सबसे बड़ा नदी मैदान है। दिसंबर 2015 में संसद को अपनी रिपोर्ट सौंपने वाली जल संसाधन संबंधी स्थायी समिति ने पाया कि देश के 92 प्रतिशत जिलों में 1995 में भूजल विकास का सुरक्षित स्तर था, वहीं 2011 में यह घटकर 71 प्रतिशत रह गया। तो वहीं दूसरी पानी की समस्या न हो इस मामले में हमें इज़राइल से प्रेरणा लेनी चाहिए। इज़राइल एक ऐसा देश है जो उपयोग किए गए पानी का 100% यूज करता है और 94 प्रतिशत घरों में वापस करता है। इजरायल में आधी से अधिक सिंचाई पुन: उपयोग किए गए पानी का उपयोग करके की जाती है।
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