दुनिया में अपने प्रत्येक विचार, सिद्धांत, व्यवहार को किसी जन समूह के अंतिम व्यक्ति तक पहुंचाने वाले संचारक के रूप में महात्मा गांधी को याद किया जाता है। आधुनिक सभ्यता की दृष्टि से उपजी मीडिया/पत्रकारिता को गांधीजी मनुष्य के लिए परिवर्तन का सबसे बड़ा माध्यम मानते थे।

एक संचारक के रूप में यदि गांधीजी को समझना है तो भारतीयता को समझना होगा। गांधीजी को आधुनिक संचार के सिद्धांतों और शास्त्रों में खोज पाना मुश्किल है। गांधीजी को जानना है तो भारतीय आत्मा, संस्कृति और संवाद को समझना होगा।
आज की व्यावसायिक पत्रकारिता में भी महात्मा गांधी को ढूंढ़ पाना कठिन है। पिछले दस वर्षों में संचार तकनीक के क्षेत्र में बड़ा बदलाव आया है।
जनसंचार के माध्यमों में दृष्टि, भाषा और संस्कृति सबको लेकर एक परिवर्तन हुआ है। गांधी जी एक तरफ समाचारपत्र को लोक जागरण और लोक शिक्षण का सबलतम साधन स्वीकार करते हैं, तो वहीं दूसरी ओर यूरोपीय पत्रकारिता और यूरोपीय दृष्टि से भारत में हो रही पत्रकारिता के आलोचक भी हैं।
महात्मा गांधी का पठन-पाठन पूरा अंग्रेजी भाषा में हुआ था लेकिन जब उन्होंने समाचारपत्र प्रकाशित किए तो सामान्य जन से संवाद करने के लिए भारतीय भाषाओं का भी चुनाव किया।
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गांधीजी एक सफल संचारक थे जिनमें भारतीय विद्वानों का समावेश एवं बल था, जैसे कृष्ण, शंकर, बुद्ध, रामानुज, समर्थ रामदास, छत्रपति शिवाजी, विवेकानंद आदि। गांधीजी जहां एक ओर अपने समाचारपत्र में पूरी दुनिया में समानता और सद्भावना लाने के लिए लेख लिखते तो वहीं दूसरी ओर अरण्डी के तेल पर फीचर भी प्रस्तुत करते हैं।
इससे समझ आता है कि गांधीजी एक ही समय मे कई मोर्चों पर डटे हुए थे। गांधीजी की सम्प्रेषण कला उनके जीवन के निश्चय से निकलती है जो उनके जीवन काल में विभिन्न दौर में आई।
साभार
कुलपति व्याख्यानमाला
माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय, भोपाल।
विचार : प्रो. रजनीश कुमार शुक्ल, कुलपति, महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय, वर्धा (महाराष्ट्र)।
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