- क्षितिज पाण्डेय, लेखक लखनऊ में रहते हैं, वह स्वतंत्र पत्रकार हैं।
राम मंदिर आंदोलन और श्री गोरक्षपीठ का सम्बंध अद्भुत है। कांग्रेस के प्रभाव वाले दौर में हिंदू और हिंदुत्व की मुखर पैरोकारी के साथ राममंदिर के मुद्दे को स्वर देने का कार्य महंत दिग्विजयनाथ जी महाराज जैसे साहसी और दूरदर्शी व्यक्ति के बूते की ही बात थी। 1934 से 1949 के दौरान उन्होंने राम मंदिर निर्माण की आवाज बुलंद की।
22,23 दिसंबर 1949 को जब विवादित ढांचे में रामलला का प्रकटीकरण हुआ उस दौरान वहां तत्कालीन श्री गोरखनाथ मंदिर, गोरखपुर के गोरक्षपीठाधीश्वर, गोरक्षपीठ महंत दिग्विजय नाथ जी महाराज कुछ साधु संतों के साथ संकीर्तन कर रहे थे। 28 सितंबर 1969 में उनके ब्रह्मलीन होने के बाद अपने गुरुदेव के सपनों को ब्रह्मलीन महंत अवेद्यनाथ जी महाराज ने अपना बना लिया। इसी के बाद शुरू हुआ राम मंदिर निर्माण का निर्णायक दौर।
अपने स्वभाव के कारण 1983 में मंदिर आंदोलन से जुड़ते ही सभी संप्रदाय के संतों के लिए स्वीकार्य हो गये। श्रीराम जन्मभूमि की मुक्ति और उस स्थान पर भव्य मन्दिर निर्माण के लिए महन्त अवेद्यनाथ जी महाराज के नेतृत्व में अत्यन्त योजनापूर्वक जनान्दोलन की रूपरेखा बनी और 1984 से प्रारम्भ किये गये इस चरण का आन्दोलन परिणाम पर पहुंचा।
लगभग पांच शताब्दियों से चल रहे संघर्ष को पूज्य महन्त जी के नेतृत्व में एक बड़ी सफलता प्राप्त हुई। 1986 में जब फैजाबाद के जिला मजिस्ट्रेट ने हिन्दू भाई-बहनों को प्रार्थना करने के लिए विवादित मस्जिद के दरवाजे पर लगा ताला खोलने का आदेश दिया था तो ताला खोलने के लिए वहां पर पूज्य ब्रह्मलीन अवेद्यनाथ जी महाराज मौजूद थे।
1984 में विज्ञान भवन, नई दिल्ली में आयोजित संत सम्मेलन में श्रीराम जन्मभूमि यज्ञ समिति के अध्यक्ष चुने गये। इस पद पर वह आजीवन रहे। इसी साल उन्होंने लखनऊ के बेगम हजरत महल पार्क में सम्मेलन करने के साथ यहां से लखनऊ तक धर्मयात्रा निकाली। एक फरवरी 1986 को अयोध्या में जब ताला खुला तब भी वह वहां मौजूद थे।
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22 सितंबर 1989 को दिल्ली में हुए संत सम्मेलन की अध्यक्षता भी उन्होंने ही की। इसी में नौ अक्टूबर 1989 को मंदिर के शिलान्यास की तिथि रखी गयी। हरिद्वार में आयोजित संत सम्मेलन में उन्होंने 30 अक्टूबर 1990 से मंदिर निर्माण की घोषणा कर दी। तय तिथि पर वह दिल्ली से अयोध्या के लिए चले पर कानपुर के पास पनकी में उनको गिरफ्तार कर लिया गया।
1992 में संत समाज के एक प्रतिनिधिमंडल के साथ उन्होंने तत्कालीन प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव से भी मुलाकात की। 1993 में मंदिर निर्माण के लिए गठित राम जन्म भूमि न्यास के भी वह सदस्य थे। लालकृष्ण आडवाणी की रथयात्रा के अलावा राम शिलापूजन, चरण पादुका पूजन, रामजानकी रथ यात्रा में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका रही।
इस दौरान गोरखनाथ मंदिर स्थित मठ राम मंदिर आंदोलन से जुड़े शीर्षस्थ लोगों के लिए आंगन जैसा हो गया। आंदोलन के सबसे अहम किरदारों में से एक अशोक सिंघल बड़े महराज का बेहद सम्मान करते थे तो साकेतधाम वासी परमहंस जी से उनका रिश्ता दोस्ताना था। अब-जब मंदिर निर्माण के राह की सभी बाधाएं दूर हो गईं तो इसके औपचारिक निर्माण वर्तमान मुख्यमंत्री और गोरक्षपीठाधीश्वर पूज्य योगी आदित्यनाथ जी महाराज पर है।
वास्तव में श्रीराम जन्मभूमि मुक्ति की यह पूरी प्रक्रिया दरअसल एक सरीखी थी, स्वाभाविक हृदयावेगों से उत्पन्न एक जनक्रांति थी। श्री गोरक्षनाथ पीठ इस लोक कल्याणकारी अभियान में तीन पीढ़ियों से सक्रिय है, ऐसा प्रभु इच्छा से ही सम्भव हो पा रहा है।
वर्तमान में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री के रूप में गोरक्षपीठाधीश्वर पूज्य योगी आदित्यनाथ जी महाराज ने हमेशा से ही अयोध्या को उसका गौरव दिलाने का प्रयास किया है। वह अयोध्या जो कुत्सित राजनीति के चलते तमाम राजनीतिक दलों के लिए अश्पृश्य सी हो गयी थी, उसे विकास के केंद्र में रखा।
पिछले ढाई से अधिक वर्षों में अयोध्या की दशा-दिशा बदलने के लिए उत्तर प्रदेश सरकार ने अनेक प्रयास किये हैं। जनपद का नाम बदलने से लेकर दिव्य-भव्य दीपावली के आयोजन तक अवधपुरी को नई विकास के नए आयामों से जोड़ने को उत्तर प्रदेश सरकार कृत संकल्पित प्रतीत हो रही है। आम जनमानस की इस बहुप्रतीक्षित अभिलाषा के पूर्ण होने का अवसर समीप है। प्रभु इच्छा से अब सब मंगल होगा।
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