25 अप्रैल, 2015 वो दिन जब नेपाल में भूकंप आया। हर तरफ तबाही का मंजर था। रिक्टर स्केल पर भूकंप की तीव्रता उस समय 7.9 थी यानी बहुत ज्यादा, लोग चीख रहे थे, लोगों की आंखों में आंसू थे और हर तरफ भागदौड़, उनके पास था अपनों का साथ और उन्हें थी सुरक्षित रखने के लिए किसी खास जगह की तलाश। ये मंजर काफी भयावह था।
रमिता यादव नेपाल की राजधानी काठमांडू में रहती हैं। वह रेडियो जर्नलिस्ट हैं। वह बताती हैं कि दोबारा भूकंप का खौफनाक मंजर वह अपनी जिंदगी में कभी नहीं देखना चाहेंगी, क्योंकि अफरा-तफरी के वो कई घंटे गुजारने के बाद वह काफी सहम गईं थी।
रमिता सहमी हुई आवाज में बताती हैं, ‘भूकंप जब आया तब मैं काठमांडू में थी। शनिवार का दिन था और दोपहर के 11 बजे थे, मैं अपनी 6 महीने की छोटी बेटी को सुलाने के लिए ले जा रही थी। तभी घर का सामान गिरने लगा, घर का सारा सामान चंद मिनट में ही हर तरफ बिखरा हुआ था। भूकंप का कंपन रुक नहीं रहा था। मेरे पति और मैं बच्ची को लेकर जैसे ही घर के बार निकले तो हर तरफ लोग भाग रहे थे। धूल, धूएं की तरह आसमान की ओर जा रही थी। वह काफी डरा देने वाला मंजर था। उस समय के हालात बयां करते हुए भी डर लगता है। सड़क पर चल रहीं बाइक के एक्सीडेंट हो रहे थे। कई बच्चे मलबे में दबकर मर गए। भूकंप रुक-रुक कर दस्तक दे रहा था। लोग सहमे हुए थे। वह इतने डरे हुए थे कि भूकंप रुक जाने के बाद भी वापिस कई घंटों तक अपने घर में जाने से डर रहे थे। भूकंप जिस दिन आया था, उसी दिन शाम को तेज बारिश हुई, जिससे परेशानियां काफी बढ़ गईं। लोगों के पास बारिश में भीगने के सिवाए कोई ऑप्शन नहीं था। बिजली जा चुकी थी। लोगों के मोबाइल फोन की बैटरी डिस्चार्ज हो चुकी थीं, लेकिन इसी दौरान इंसानियत की मिसाल कायम करते हुए एक व्यक्ति ने अपने घर में रखी बैटरियां बाहर रख दीं। लोग उन बैटरी से मोबाइल चार्ज कर रहे थे और अपनो को जिंदा और ठीक होने की सूचना चिल्लाते और चीखते हुए दे रहे थे। आंखे नम कर देने वाली बात यह थी कि जिस व्यक्ति ने अपनों से संपर्क करने के लिए कई बैटरी बाहर रखी थीं। उसका बेटा भूकंप आने पर दीवार से दबकर मर चुका था। उसकी आंखें नम थीं और अपनों से बात कर रहे लोगों को देख वह शांत था और आंखों में बह रहे थे तो सिर्फ आंसू।’
17000 लोग सो गए मौत की नींद
नेपाल, हिमालय की गोद में बसा एक प्यारा देश है। हर साल यहां लाखों पर्यटक आते हैं। दुनिया की सबसे ऊंची 14 पहाड़ियों में से 8 नेपाल में हैं। नेपाल के काठमांडू में रहने वाले टीवी जर्नलिस्ट बीरेन्द्र केएम कहते हैं कि 81 साल बाद आए सबसे भीषण भूकंप ने नेपाल में 17000 लोगों जान ले ली, यह पुष्टि सरकार ने की थी, जिसमें अकेले काठमांडू में ही 9000 लोग कभी न जागने वाली नींद में सो गए।
काठमांडू स्थित सिविल मीडिया सर्विस के संचालक बीरेन्द्र केएम बताते है ‘जिस समय भूकंप आया उस समय वह काठमांडू के मण्डिकाटार जगह पर थे, जहां वो एक इंटरव्यू के सिलसिले में पहुंचे थे। वह आगे कहते हैं कि मैनें इस तरह का भूकंप अपनी जिंदगी में पहली बार देखा था। मैं न्यूज चैनल्स के लिए भी काम करता हूं। उस समय कंपन करती धरती पर रिपोर्टिंग और फोनो कर रहा था। मैं खुद हिल रहा था, लेकिन दुनिया को इस तबाही के मंजर में गिरते घर और चीखते लोगों की आवाज के बीच सूचना दे रहा था। बीरेन्द्र उस समय लगातर 26 घंटे तक ग्राउंड जीरो पर भूकंप की कवरेज करने वाले अकेले जर्नलिस्ट थे।’
जब 72 घंटे बाद मलबे से जिंदा निकला बच्चा
काठमांडू में पुराने भवन ज्यादा थे, जो अब नहीं हैं। नई बिल्डिंग बन रही हैं। उस समय काठमांडू का बालाजू होटल एरिया जोकि दिल्ली का करोल बाग जैसा ही है वहां लॉज और होटल में कई विदेशी पर्यटक फंसे हुए थे। भूकंप के दौरान कई ऐसी घटनाएं देखने को मिलीं, जिनसे साबित होता है कि भगवान हैं और वो हमारी मदद करता हैं। हुआ कुछ यूं था कि 72 घंटे बाद मलबे से एक बच्चे को जीवित निकाला गया था। हालही में, जब मैं प्रधानमंत्री खड्ग प्रसाद शर्मा ओली के कार्यक्रम की रिपोर्टिंग करने धरारा क्षेत्र में पहुंचा तो उस बच्चे से मिला, जिसे मलबे से 72 घंटे बाद निकाला गया था। वह अब स्वस्थ्य है, लेकिन भूकंप में उसने अपनी बड़ी बहन को खो दिया, जोकि अब इस दुनिया में नहीं हैं।
उसने यूरिन पीकर खुद को रखा जिंदा
बीरेंद्र बताते हैं कि 25 अप्रैल को भूंकप आया लेकिन पूरे सप्ताह तक मलबा हटाने का सिलसिला चलता रहा। अब तक लोगों के जिंदा रहने की उम्मीद राहत और बचाव कर रहे लोगों के मन में कम होती जा रही थी, लेकिन इसी दौरान एक बड़ी बिल्डिंग का मलवा हटाने के बाद 17 साल के युवा को 7 दिन बाद बाहर निकला गया। उसकी सांसे चल रही थीं, लेकिन वह बेहोश था। उसे अस्पताल ले जाया गया। जब उसे होश आया तो उसने बताया कि किस तरह उसने 6 दिन तक खुद का यूरिन पीकर खुद को जिंदा रखा। साल 2018 ,वो 17 साल का लड़का अब 20 साल का हो चुका है। इस तरह का वो मंजर जिसने देखा था कोई नहीं भूल पाएगा।
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