भारत के पीएम नरेंद्र मोदी 11-12 मई, 2018 को नेपाल यात्रा पर हैं। इस दौरान शनिवार 12 मई को मोदी का नेपाल की राजधानी काठमांडू में पशुपतिनाथ मंदिर जाने का भी कार्यक्रम है। नेपाल दौरे की शुरुआत पीएम नरेंद्र मोदी ने जनकपुर से की है। पीएम मोदी ने जनकपुर के जानकी मंदिर पहुंच कर पूजा-अर्चना की। उनके साथ इस मौके पर नेपाली पीएम केपी ओली भी मौजूद थे।
बहरहाल, नेपाल का पशुपतिनाथ मंदिर कई मायनों में खास है। वह इसलिए कि नेपाल अध्यात्म की भूमि है और एक समय यह जगह पूरी तरह से जिंदगी के आध्यात्मिक पहलुओं से जुड़ी हुई थी और इनमें नेपाल का पशुपतिनाथ मंदिर सबसे प्रमुख माना जाता है।
पशुपतिनाथ चार चेहरों वाला शिवलिंग हैं। पूर्व दिशा की ओर वाले मुख को तत्पुरुष और पश्चिम की ओर वाले मुख को सद्ज्योत कहते हैं। उत्तर दिशा की ओर देख रहा मुख वामवेद है, तो दक्षिण दिशा वाले मुख को अघोरा कहते हैं। ये चारों चेहरे तंत्र-विद्या के चार बुनियादी सिद्धांत हैं। कुछ लोग यह भी मानते हैं कि चारों वेदों के बुनियादी सिद्धांत भी यहीं से निकले हैं। कहते हैं कि यह शिवलिंग, वेद लिखे जाने से पहले ही स्थापित हो गया था और इससे कई पौराणिक कहानियां भी जुड़ी हुई हैं।
‘यह एक महान प्रयोग था इसमें तांत्रिक संभावनाओं से भरपूर इंसान का एक बड़ा शरीर बनाने की कोशिश की गई थी। पशुपतिनाथ दो शरीरों का सिर है। एक शरीर दक्षिणी दिशा में हिमालय के भारतीय हिस्से की ओर है, दूसरा हिस्सा पश्चिमी दिशा की ओर है, जहां पूरे नेपाल को ही एक शरीर का ढांचा देने की कोशिश की गई थी।’
इनमें से एक कहानी यूं है कि कुरुक्षेत्र की लड़ाई के बाद अपने ही भाईयों की हत्या करने की वजह से पांडव बेहद दुखी थे। उन्होंने अपने सगे संबंधियों को मारा था। इसे गोत्र वध कहते हैं। उनको अपनी करनी का पछतावा था और वे खुद को अपराधी महसूस कर रहे थे। खुद को इस दोष से मुक्त कराने के लिए वे शिव की खोज में निकल पड़े।
लेकिन शिव नहीं चाहते थे कि जो जघन्य कांड उन्होंने किया है, उससे उनको इतनी आसानी से मुक्ति दे दी जाए। इसलिए पांडवों को अपने पास देखकर उन्होंने एक बैल का रूप धारण कर लिया और वहां से जाने की कोशिश करने लगे। लेकिन पांडवों को उनके भेद का पता चल गया और वे उनका पीछा करके उनसे मिलने की कोशिश की। इस भागमभाग के दौरान शिव जमीन में लुप्त हो गए और जब वह पुन: अवतरित हुए, तो उनके शरीर के टुकड़े अलग-अलग जगहों पर बिखर गए।
नेपाल के पशुपतिनाथ में उनका मस्तक गिरा था और तभी इस मंदिर को तमाम मंदिरों में सबसे खास माना जाता है। केदारनाथ में बैल का कूबड़ गिरा था। बैल के आगे के दो पैर तुंगनाथ में गिरीं। यह जगह केदार के रास्ते में पड़ता है। बैल का नाभि वाला हिस्सा हिमालय के भारतीय इलाके में गिरा। इस जगह को मध्य-महेश्वर कहा जाता है। यह एक बहुत ही शक्तिशाली मणिपूरक शिवलिंग है। बैल के सींग जहां गिरे, उस जगह को कल्पनाथ कहते हैं। इस तरह उनके शरीर के अलग-अलग टुकड़े अलग-अलग जगहों पर मिले।
उनके शरीर के टुकड़ों के इस तरह बिखरने का वर्णन कहीं न कहीं सात चक्रों से जुड़ा हुआ है। इन मंदिरों को इंसानी शरीर की तरह बनाया गया था। यह एक महान प्रयोग था इसमें तांत्रिक संभावनाओं से भरपूर इंसान का एक बड़ा शरीर बनाने की कोशिश की गई थी। पशुपतिनाथ दो शरीरों का सिर है। एक शरीर दक्षिणी दिशा में हिमालय के भारतीय हिस्से की ओर है, दूसरा हिस्सा पश्चिमी दिशा की ओर है, जहां पूरे नेपाल को ही एक शरीर का ढांचा देने की कोशिश की गई थी। नेपाल को पांच चक्रों में बनाया गया था।
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