- सुरुचि अग्रवाल
मई 1998 में पोखरण परीक्षण रेंज पर किए गए पांच परमाणु बम परीक्षणों की श्रृंखला का एक हिस्सा है। आज भी विश्व भर में इंटेलिजेंस के मामले में इस परीक्षण का उदाहरण दिया जाता है। इस परीक्षण के बाद कुछ ऐसे भी देश थे, जिन्होंने भारत पर आर्थिक प्रतिबंध लगाया था, लेकिन उस समय अटलजी ने किस तरह इस पूरी स्थिति को संभाला, इस बारे यूनाइटेड बैंक ऑफ इंडिया (असम) में कार्यरत सौरभ रॉय बताते हैं।
वो 1998 साल था जब भारत राजनीतिक उठापठक के एक लंबे दौर से बाहर आ रहा था। उस समय देश में नई गठबंधन वाली सरकार सत्ता में आई थी। देश की आर्थिक स्तिथि पटरी पर आने का इंतज़ार कर रही थी। उस वक़्त नई-नवेली वाजपेयी सरकार ने परमाणु परीक्षण का साहसी पर हैरान कर देने वाला फैसला कर लिया था।
वाजपेयी जी दूरदर्शी थे इसीलिए वो समझ रहे थे कि पोखरण-2 के बाद के हालात कैसे होंगे। इसीलिए उन्होंने तत्कालीन वित्त मंत्री को परीक्षण से पहले ही आगाह कर दिया था कि दुनिया के बड़े देश इस परीक्षण के बाद भारत पर कैसे दबाव डालेंगे। 11 और 13 मई के बाद हुआ भी ऐसा ही। अमेरिका, जापान सहित तमाम बड़े देश और संयुक्त राष्ट्र से लेकर आईएमएफ जैसी संस्थाओं ने भारत पर बड़े पैमाने पर आर्थिक प्रतिबंध लगा दिए थे। सहायता राशि पर रोक लग गई, क्रेडिट रेटिंग घटा दी गई, डॉलर के मुकाबले रुपया न्यूनतम स्तर पर पहुंच गया था।
पर ऐसे हालात में भी वाजपेयी सरकार ने तय किया कि हम प्रतिबंध हटाने के लिए किसी देश के सामने गिड़गिड़ाएंगे नहीं, बल्कि ऐसी ताकत बनेंगे और ऐसी तरक्की करेंगे कि हमसे ज़्यादा प्रतिबंध लगाने वाले देशों को प्रतिबंधफसोस होगा। विदेशी निवेश के लिए भी सरकार ने एनआरआई के लिए बॉन्ड जारी कर भरपाई करने का फैसला कर लिया। नतीजा ये था कि वाजपेयी सरकार की आर्थिक नीतियों ने जल्द ही देश में विकास का एक नया खाका खींच दिया, और धीरे-धीरे दूसरे देशों ने एक-एक देश अपने प्रतिबंध वापस लेने को मजबूर हो गए।
इंटेलिजेंस ऑफीसर हेमंत कुमार बताते हैं, इंटेलिजेंस में सामान्यतः ह्यूमन इंटेलिजेंस और टेक्निकल इंटेलिजेंस होता है। पोखरण-2 ने यह साबित किया कि कैसे मुश्किल वक़्त में ह्यूमन इंटेलिजेंस कारगर साबित हो सकता है। ह्यूमन इंटेलिजेंस का उपयोग भारत के लिए सफल साबित हुआ और अमेरिका के लिए टेक्निकल इंटेलिजेंस असफल।
इंटेलिजेंस दो पार्ट में काम करता है, एक ऑपरेशनल और दूसरा एक्शनेबल। पोखरण टेस्ट ने भारत की संप्रभुता का उदाहरण देते हुए यह साबित किया कि भारत ने किसी भी अंतरराष्ट्रीय दबाव में आकर कोई फैसला न लिया है और न ही भविष्य में लेगा।
पोखरण देश के लिए एक गौरवशाली क्षण था जो सदा के लिए यादगार बन गया और इस यादगार लम्हे को अमर बनाने के लिए 11 मई को राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी दिवस के रूप में घोषित किया गया। खेद है कि भारत को ऐसा गौरवशाली क्षण देने वाला भारतीय राजनीति का यह सूरज अपनी प्रखर रश्मियों को समेट कर सदा के लिए अस्त हो गया।
-लेखिका पिछले कई वर्षों से मीडिया में सक्रिए हैं।
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