बेरोजगारी के मामले में मोदी सरकार ने कुछ खास नही किया। यह उस समय की बात है जब लॉकडाउन (तालाबंदी) जैसी स्थिति भारत में दूर-दूर तक नहीं थी। लेकिन जब लॉकडाउन हुआ तो जनता के सामने सबसे बड़ी समस्या अपनी जान बचाना है और वो बच जाते हैं तो क्या खाएंगे? ये सवाल उठना लाजिमी है।
निजी संस्था सीएमआईई के अनुसार रोजगार की स्थिति मार्च से गिरनी शुरू हो गई थी, लेकिन अप्रैल के पहले सप्ताह में इसमें बहुत तेज बदलाव आया। जो बेरोजगारी दर मार्च के बीच में 8.4 प्रतिशत थी वो अब बढ़ कर 23.4 प्रतिशत हो गई है। कुछ दिन पहले महामारी और लॉकडाउन के बीच अपने अपने गृह राज्यों की तरफ लौटते श्रमिकों और दिहाड़ी मजदूरों ने जिस संकट की ओर इशारा किया था उसकी पुष्टि होनी शुरू हो गई है।
सीएमआइई का आकलन है कि लॉकडाउन घोषित होने के तुरंत बाद वाले हफ्ते में काम-धंधे के आयु-वर्ग वाली आबादी का मात्र 27.7 प्रतिशत हिस्सा रोजगार में लगा था। ये आंकड़ा 28.5 करोड़ लोगों का होता है। अर्थशास्त्री महेश व्यास बताते हैं कि इसके मायने कि मात्र दो हफ्ते के भीतर आय-अर्जन के किसी भी काम में लगे लोगों की संख्या 40.4 करोड़ से घटकर 28.5 करोड़ पर पहुंच गई यानि रोजगार में लगे लोगों की संख्या में दो हफ्ते के भीतर 11.9 करोड़ की कमी।
निजी संस्था सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी ने कहा है कि यूं तो लॉकडाउन के पहले भी देश में रोजगार को लेकर स्थिति आशाजनक नहीं थी, लेकिन संक्रमण के फैलने और तालाबंदी के शुरू होने के बाद देश में बेरोजगारी के आंकड़ों में बहुत बड़ा उछाल आया है। इस बारे में कोई सरकारी आंकड़ा अभी तक आया नहीं है। काफी लंबे समय से सरकारी आंकड़ों को लेकर विवाद भी चल रहा है क्योंकि केंद्र सरकार पर आंकड़ों को छिपाने का आरोप है।
सीएमआईई एक निजी संस्था है जो हर सप्ताह देश में रोजगार की स्थिति पर सर्वेक्षण करती है। सीएमआईई के अनुसार रोजगार की स्थिति मार्च की शुरुआत से ही, यानी तालाबंदी के पहले ही गिरनी शुरू हो गई थी, लेकिन मार्च के आखिरी सप्ताह और अप्रैल के पहले सप्ताह में इसमें बहुत तेज बदलाव आया।
मार्च में बेरोजगारी दर 8.7 प्रतिशत थी जो कि अपने आप में पिछले साढ़े तीन सालों में सबसे ऊंची बेरोजगारी दर थी। बेरोजगारी दर का मतलब है उन लोगों का प्रतिशत जो नौकरी ढूंढ रहे थे लेकिन उन्हें मिली नहीं। जनवरी से मार्च के बीच बेरोजगार लोगों की संख्या तीन करोड़ 20 लाख से बढ़ कर तीन करोड़ 80 लाख हो गई। जो बेरोजगारी दर मार्च के बीच में 8.4 प्रतिशत थी वो अब बढ़ कर 23.4 प्रतिशत हो गई है।
विशेषज्ञों की माने तो तालाबंदी के दौरान करोड़ों लोगों के रोजगार पर असर पड़ने का यह शुरूआती अनुमान है। मीडिया रिपोर्ट के अनुसार अर्थशास्त्री और भारत के पूर्व चीफ स्टैटिस्टिशियन प्रोनब सेन का अनुमान है कि इस दौरान कम से कम पांच करोड़ लोगों का रोजगार छीन गया होगा। केंद्र सरकार में आर्थिक मामलों के सचिव रह चुके सुभाष चंद्र गर्ग का कहना है कि यह आंकड़ा 10 करोड़ तक हो सकता है।
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