भक्ति और नशा इन दोनों का ही मन से गहरा संबंध है। यह दोनों ही सुखद अवस्थाएं हैं। लेकिन यह दोनों ही एक दूसरे के विपरीत है और इन दोनों के बीच अंतर यह है कि भक्ति आपके मन का विकास करती है, जबकि नशा उसे बर्बाद कर देता है। नशा आमतौर पर किसी चीज का होता है, लेकिन भक्ति आप केवल उसी के प्रति रख सकते हैं, जिसे आप अपने से बेहतर मानते हैं।
भक्ति का अभ्यास नहीं किया जा सकता। इसे न तो पैदा किया जा सकता है, न उगाया जा सकता है। जब आप किसी को अपने से बेहतर और ऊंचा पाते हैं और उससे जबर्दस्त तरीके से अभिभूत हो जाते हैं, तो भक्ति स्वाभाविक रूप से सामने आती है।
नशा इसलिए होता है, क्योंकि आपने किसी चीज का स्वाद चखा और वह आपको बेहद पसंद आ गई। आप इसे थोड़ा ज्यादा करना चाहते हैं, थोड़ा और ज्यादा। इसी तरह इसकी मात्रा बढ़ती जाती है और एक दिन आप खुद को इसके जाल में फंसा पाते हैं।
सद्गुरु कहते हैं कि अगर देखें तो किसी भक्त को आप किसी नशेड़ी (नशा करने वाले व्यक्ति) से ज्यादा नशे में पाएंगे। नशेड़ी अपने नशे को छिपा सकता है, लेकिन भक्त अपने नशे को नहीं छिपा सकता। यही उसकी समस्या है। नशीली दवाएं लेने के आदी किसी इंसान का अगर अपने पर थोड़ा भी नियंत्रण है तो वह सामान्य नजर आ सकता है और दुनिया को धोखा दे सकता है, लेकिन भक्त ऐसा कर पाने में सक्षम नहीं है। उसका व्यसन तो जगजाहिर होता है। वह उसे छिपा नहीं पाता।
सुख की अनुभूति कराते हैं दोनों
नशे और भक्ति का यह सवाल साथ-साथ आता है। ये दोनों एक दूसरे के विपरीत नहीं हैं। अगर ये प्रश्न साथ-साथ आते हैं तो इसके पीछे वजह यह है कि ये दोनों ही इंसान को अनोखे सुख की अनुभूति कराते हैं।
कोई इंसान किसी चीज का आदी इसलिए हो जाता है, क्योंकि उसका अनुभव जबर्दस्त होता है। क्या आपने किसी को नीम की गोली का आदी होते देखा है? आपको इसे पूरी जागरूकता से लेना होगा। आप रोज सोचेंगे कि इसे खाऊं या नहीं। हर दिन सोचेंगे कि चलो एक दिन और खा लेता हूं।
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ऐसे में आप नीम की गोली के आदी कभी होंगे ही नहीं इसलिए यह सुरक्षित है। अगर आपको नीम के बाकी फायदों के बारे में नहीं पता है तो इतना तो आप जानते ही हैं कि यह सुरक्षित है, यह आपको फंसाएगा नहीं। कहने का मतलब यह हुआ कि अगर कोई किसी चीज का आदी हो रहा है तो उसे जरूर ही कोई शानदार अनुभव हुआ होगा।
लोग तंबाकू के आदी हो जाते हैं, कॉफी, शराब, या दूसरे तरह के ड्रग्स के आदी हो जाते हैं, क्योंकि इन चीजों से उन्हें अच्छा महसूस होता है। अगर इनसे उन्हें दर्द हो, अगर ये चीजें उनका मन खराब करें तो वे इनके प्रति कभी आकर्षित नहीं होंगे।
भक्ति और नशा सिर्फ अनुभव एक से हैं
भक्ति और व्यसन अनुभव के स्तर पर आपस में जुड़े हुए हैं, और कहीं नहीं। अनुभव के मामले में आप इन दोनों को एक साथ देख सकते हैं। दोनों ही जबर्दस्त आनंद की अनुभूति कराते हैं। भक्ति का मतलब है, आपके भाव बहुत मीठे और खूबसूरत हो गए हैं।
किसी शख्स को भक्त पागल जैसा नजर आ सकता है। किसी तार्किक बुद्धि इंसान को उसके तौर-तरीके बेवकूफी भरे, अतार्किक दिखाई दे सकते हैं। आपके पास जीवन में दो विकल्प हैं, पहला, आप दिन के चौबीसों घंटे जबर्दस्त आनंद में बिता रहे हैं और दूसरा, आपके दिमाग में तमाम तरह की परेशानियां भरी हैं, जो आपको हरदम तंग कर रही हैं और जिनका वास्तविकता से कोई लेना-देना नहीं है। दूसरे विकल्प को क्या आप बुद्धिमानी का काम कह सकते हैं?
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