जब भ्रूण मां के गर्भ में पल रहा होता है, उसे हम अजन्मा शिशु कहते हैं। यह बेहद दिलचस्प है कि भ्रूण भी आध्यात्मिक जीवन जीता है, लेकिन कैसे? इसे जानने के लिए हमें यह जान लेना बेहद जरूरी है कि हमारा शरीर पंच तत्वों से बना है और मां के गर्भ में भ्रूण का निर्माण भी पंचतत्वों के कारण ही होता है।
गरुड़ पुराण में उल्लेखित है कि गर्भ में प्रवेश करने वाला बेटा/ बेटी उच्चतम आनंद का दाता है, यह आनंद सबसे पहले उसकी मां को मिलता है, जिसके गर्भ में शिशु पल रहा होता है। जब गर्भ में शिशु हो और मां विनम्रता, हर कार्य में कुशलता और बुद्धिमानी की संगत करती है तो शिशु भी इन सभी प्रक्रियाओं से गुजरता है। इसलिए कहा भी गया है कि जब गर्भ में शिशु हो तो मां को अच्छी संगत रखनी चाहिए और सात्विक जीवन जीना चाहिए।
एक महिला को उस समय विचारों की शुद्धता पर बहुत महत्व देना चाहिए। क्योंकि गर्भ में पल रहा शिशु हर छोटी सी छोटी घटना को अपने मन में समाहित कर रहा होता है। इस दौरान मां को आध्यात्मिक होना बेहद जरूरी है तभी तो शिशु आध्यात्मिकता का अहसास गर्भ में कर पाएगा। वह नहीं जानता कि यह क्या है, लेकिन उसके विकसित होते दिमाग में यह सब कुछ संग्रहित हो रहा होता है।
अजन्में शिशु को प्रकृति करती है नियंत्रित
मां के गर्भ में पल रहे शिशु को प्रकृति नियंत्रित करती है यही कारण है कि जैसे मां के विचार उस समय होंगे वैसा ही शिशु का मस्तिष्क प्रतिक्रिया देगा। इसे हम महाभारत की कहानी से जान सकते हैं। कहानी कुछ यूं है कि अभिमन्यु जोकि अर्जुन और सुभद्रा (बलराम व श्रीकृष्ण की बहन) के पुत्र थे। कथानुसार अभिमन्यु ने अपनी मां के गर्भ में रहते ही अर्जुन द्वारा सुनाई जा रही चक्रव्यूह भेदन कला का रहस्य जान लिया था, लेकिन सुभद्रा के बीच में ही सो जाने के कारण वह उससे निकलने की विधि नहीं सुन पाए थे। युद्ध स्थल पर इसी कारण उन्हें अपने प्राणों की आहुति देनी पड़ी थी।
कहने का मतलब है कि सुभद्रा जब सो जाती हैं, तो गर्भ में पल रहे शिशु से उनका संपर्क नहीं हो पाता और वह चक्रव्यूह भेदन से निकलने की विधि नहीं जान पाता। जब शिशु भ्रूण अवस्था में मां के गर्भ में पल रहा होता है, वह मां के हर अहसास को महसूस करता है और सुन सकता है। भले ही वह उतनी शुद्धता से उसको न समझे, लेकिन उसका दिमाग सब कुछ ग्रहण कर रहा होता है।
आत्मा और अध्यात्म का संगम
आत्मा का अध्यात्म से काफी गहरा रिश्ता होता है। आत्मा कई शरीर में अनंत काल तक प्रवेश करती है, जब तक उसे मोक्ष नहीं मिल जाता। जब मां के गर्भ में भ्रूण आता है, तब आत्मा उस भ्रूण में प्रवेश करती है। यह शरीर आत्मा को पूर्व जन्मों में किए गए कर्म के कारण मिलता है। यहां आत्मा शरीर में प्रवेश कर अध्यात्म के जरिए मोक्ष के लिए प्रयासरत् रहती है। यदि मां भी आध्यात्मिक है, तो आत्मा जो भ्रूण में होती है तब से ही आध्यात्मिकता के संपर्क में आ जाती है। इस तरह एक अजन्मा बच्चा भी आध्यात्मिक जीवन की शुरूआत गर्भ में रहते ही करता है, लेकिन यह तभी होगा जब मां भी आध्यात्मिक होंगी।
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