दुनिया में अगर कोई वास्तव में ईश्वर रहित संस्कृति है तो वह भारत की संस्कृति है। यह एकमात्र ऐसी जगह है जहां इस बात को लेकर कोई एक मान्यता नहीं है कि ईश्वर क्या है। अगर आप अपने पिता को ईश्वर की तरह देखने लगें, तो आप उनके सामने ही सिर नवा सकते हैं। अगर आपको अपनी मां में ईश्वर के दर्शन होते हैं, तो आप उसके सामने सिर झुका सकते हैं और फिर जब आप गुरु में ईश्वर को देखते है तो उनके आगे अपना सिर झुका देते हैं।
दरअसल, गुरु एक जीवित मानचित्र है। हो सकता है, आप अपनी मंजिल तक बिना मानचित्र के पहुंच जाएं, लेकिन जब अनजाने इलाके में यात्रा कर रहे हों, तो आपको नक्शे की जरूरत होगी ही। अगर आप बिना किसी मार्ग-दर्शन के आगे बढ़ेंगे तो इधर-उधर ही भटकते रह जाएंगे, भले ही आपकी मंजिल अगले कदम पर ही हो। बस इसी मार्ग-दर्शन के लिए आपको गुरु की जरूरत पड़ती है।
हो सकता है कि आप सोच रहें हों कि क्या गुरु जरूरी है? बिल्कुल जरूरी नहीं है। अगर आप अपना रास्ता और मंजिल अपने आप ही हासिल करना चाहते हैं तो आप ऐसा कर सकते हैं। यह बात और है कि इस काम में आपको अनंत काल भी लग सकता है।
सद्गुरु जग्गी वासुदेव बताते हैं गुरु कोई व्यक्ति नहीं होता, वह तो बस एक संभावना है। आप गुरु को खोजने नहीं जाते। अगर आपकी इच्छा गहरी हो जाए, अगर आप अपने अस्तित्व की प्रकृति को न जानने के दर्द से तड़प रहे हैं, तो आपको गुरु खोजने की जरूरत नहीं होगी। वह खुद आपको खोज लेंगे, आप चाहे कहीं भी हों। जब अज्ञानता की पीड़ा आपके भीतर एक चीख बनकर उभरे, तो शर्तिया गुरु आप तक पहुंच जाएंगे।
गुरु शब्द दो अक्षरों से मिलकर बना है। गु और रु, ‘गु’ के मायने हैं अंधकार और ‘रु’ का मतलब है भगाने वाला। कोई भी चीज या इंसान, जो आपके अंधकार को मिटाने का काम करता है, वह आपका गुरु है। यह कोई ऐसा इंसान नहीं है जिससे आपको मिलना जरूरी हो। गुरु तो एक तरह की रिक्तता है, एक विशेष प्रकार की ऊर्जा है।
यह जरूरी नहीं है कि गुरु कोई व्यक्ति हो। लेकिन आप एक गुरु के साथ, जो शरीर में मौजूद हो, खुद को बेहतर तरीके से जोड़ सकते हैं, आप अपनी शंकाओं का समाधान कर सकते हैं। एक सच्चा जिज्ञासु, एक ऐसा साधक जिसके दिल में गुरु को पाने की प्रबल इच्छा होती है, वह हमेशा उसे पा ही लेता है। इसमें कोई शक की गुंजाइश नहीं है। जब भी कोई वास्तव में बुलाता है, याचना करता है तो अस्तित्व उसका उत्तर जरूर देता है।
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