आज बहुत से लोग को आध्यात्मिकता के नाम से ही चिढ़ (इरीटेड होना – एक मानसिक बीमारी) जाते हैं। इसका कारण है और वो ये कि आध्यात्मिकता को दयनीय ढंग से रहने के रूप में चित्रित किया जाता है। यहां आप, यदि पढ़ रहे हैं तो आध्यात्मिक होने के सच्चे अर्थ को समझने जा रहे हैं।
आज, संसार में बहुत से लोगों को, विशेष रूप से युवाओं को, आध्यात्मिकता के बारे में एक चिढ़ (इरीटेड) सी हो गई है। ऐसा इसलिए हुआ है क्योंकि लोगों के मन में आध्यात्मिकता की छवि को तुच्छ ढंग से प्रस्तुत किया जाता रहा है।
लोगों ने आध्यात्मिकता का अर्थ ये लगा लिया है कि इसका मतलब अच्छा भोजन न करना, रास्ते के किनारे बैठ कर भीख मांगना है। आध्यात्मिकता को लोग दुःखी जीवन जीने के रूप में देखते हैं, अपने आप को यातना देना, और तो और जीवन के ही विरुद्ध होना, आप अपने जीवन का आनंद नहीं ले सकते और हर संभव तरह से पीड़ा सहते हैं।
सही बात ये है कि आध्यात्मिक होने का आप की बाहरी परिस्थिति से कुछ भी लेना देना नहीं है। सदगुरु बताते हैं आप आध्यात्मिक हो सकते हैं, चाहे आप झोपड़ी में रहते हों या महल में। झोपड़ी या महल में रहना या तो आप का चयन है या आप की सामाजिक और आर्थिक मजबूरी। इसका आप की आध्यात्मिकता से कोई लेना देना नहीं है।
आध्यात्मिक होने का अर्थ यह है कि आप अपने अनुभव से जानते हैं, ‘मैं आपने आप में आनंद का स्रोत हूं’। अभी तो आप को लगता है कि आप के आनंद का स्रोत कोई दूसरा व्यक्ति या वस्तु है, अतः आप हमेशा ही उन पर निर्भर होते हैं। अगर आप इस बात को जान लें, समझ लें कि आप स्वयं अपने आनंद के स्रोत हैं, तो क्या आप हर समय आनंदपूर्ण नहीं होंगे?
यह कोई चयन का मामला भी नहीं है। वास्तव में, जीवन स्वयं ही आनंदपूर्ण होना चाहता है। यदि आप अपने जीवन की ओर देखें आप अपने आप को शिक्षित करते हैं, धन कमाते हैं, मकान, परिवार, बच्चे-आप ये सब करते हैं क्योंकि आप को आशा है कि किसी दिन आप को इन सब से आनंद मिलेगा। अब आप ने बहुत सारी चीजें जमा कर ली हैं, पर आनंद ही एक चीज़ है जो आप भूल गए हैं।
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