- भूमिका कलम।
देश के सबसे स्वच्छ शहर इंदौर से उत्तरप्रदेश के सबसे हाईप्रोफाइल शहर बनारस का सफ़र जीवन के कभी ना भुलाने वाले प्रेम की तरफ जहन में बस गया है। 12 ज्योतिर्लिंगों में सबसे बड़े काशी विश्वनाथ, कालभैरव, संकटमोचन सहित असंख्य मंदिरों और मां गंगा के घाटों के साथ बुद्ध के ध्यान योग और हथकरघा कारीगरी का अनूठा संयोजन है ‘काशी’।
वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी के लोकसभा क्षेत्र के कारण राष्ट्रीय स्तर पर लोगों की नज़रों में आया बनारस उथलपुथल का केंद्र भी हो चला है। इतिहास की समृद्धता के साथ ही कहते हैं ठगों और चोरों के लिए भी जाना जाता है बनारस। हालांकि मेरा अनुभव इससे अतर ही रहा।
इंदौर से हवाईयात्रा कर शाम के लगभग 6 बजे हम एयरपोर्ट से तय होटल में जाने के लिए टैक्सी में बैठे। यहां से ही शुरू हो गई थी बनारस की खुशबू। टैक्सी ड्राइवर राजेश ने अपनी बातों-बातों में हमें बनारस से प्रयाग की एक काल्पनिक यात्रा तो करवा ही दी। एयरपोर्ट से होटल तक लगभग 60 मिनट में बनारस की राजनीति हो या मुंबई से बनारस की तुलना सब कुछ सुनने लायक था।
बुद्ध के ध्यान योग और पहले उपदेश की धरती सारनाथ, जहां भारतीयों से ज्यादा जापानी, ताइवानी, कंबोडियाई, श्रीलंकाई और बौद्ध धर्म को मानने वाले लोग पूरी दुनिया महत्वपूर्ण तीर्थ पहुंचते हैं। शान्ति पूर्वक अपनी बारी आने पर मंदिरों में प्रवेश कर रहे हैं और स्वच्छता का विशेष ख्याल रखते हुए कोई गलती नहीं।

शांति शब्द इसलिए आसानी से कहा जा सकता है कि बहुत भीड़ भाड़ के बावजूद भी कहीं कोई जल्दबाज़ी या धक्कामुक्की नहीं थी। यहां आसपास ही 6 से 7 दर्शनीय स्थल हैं, पहले हम विश्व शांति मंदिर में पहुंचे यहां शान्ति का असीम कभी ना मिटने वाला अहसास मिला। सारनाथ की सबसे बड़ी विशेषता ही ये है कि बुद्ध ने यहां ज्ञान प्राप्ति के बाद अपना सबसे पहला उद्बोधन दिया था।
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कैसा लगा होगा उनको असीम शान्ति और आनंद चित्त के मालिक होने के बाद, क्या पहला शब्द और क्या भाव रहा होगा। यहां की वायु में सिद्धार्थ से बुद्ध बने इस इंसान के स्पर्श के बाद। ये अनुभति आज भी इस हवा में मौजूद है, जिसे पल पल महसूस किया जा सकता है। मंदिरों के आसपास ही आपको अलग-अलग जगह बौद्ध भिक्षु ध्यान में मग्न दिख जाएंगे। ये दुनिया उनके लिए ठहर गई हो जैसे। एक मंदिर जो भारत की आजादी के पहले से प्रस्तावित था और राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने भी उसके बनने में योगदान दिया था।

यहां बौद्ध धर्म को मानने वाले देशों को मंदिर बनाने के लिए भारत सरकार द्वारा भी जमीन दी गई है। बुद्ध से जुड़ी यादों को शांतिप्रिय तरीके से बखूबी सजाकर रखा है। यहां बुद्ध भी सोने कि चमक से ना बच पाए। बहुत ही महंगी लकड़ी पर कारीगरी के साथ सोने के वर्क से जड़ी हुई मूर्ति अपने ध्यान की मुद्रा में मानों सदियों पुराने बुद्ध को वक्त जितना तरोताज़ा बनाए हुए है।
सारनाथ के सबसे बड़े स्तूप के पास ध्यान लगाने के बाद आपको वक्त का पता नहीं चलता। मंदिर और ध्यान पार्क से बाहर निकलते ही लोकल मार्केट में सुंदर घण्टियों और ॐ के उच्चारण करने वाले धातु के कटोरे यहां की विशेषता हैं। ध्यान विधियों की किताबें भी लोगो रुचि से ले रहे थे। साथ बनारसी कपड़े से बने खूबसूरत बैग विदेशियों की पसंद बने हुए हैं।
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