चीन के दक्षिण पश्चिमी शांक्सी प्रांत के शहर शियान का एक होटल इन दिनों पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र बना हुआ है। वजह है होटल के कमरों में टेराकोटा की मूर्तियों जो दीवारों पर इस तरह व्यवस्थित की गई हैं, मानो टेराकोटा से बने ये सैनिक सुरक्षा के लिए आस-पास खड़े हों।
इस होटल में खासतौर पर इन कमरों में ठहरना सम्राट बन जाने की कल्पना की तरह है। यह होटल इन दिनों चीनी और विदेशी दोनों मेहमानों के बीच काफी लोकप्रिय बना हुआ है।

यह होटल 53 साल के गुओ झिहुआ के स्वामित्व में है, जिसने अपने जीवन का अधिकांश भाग पर्यटकों को चिंग राजवंश (221-206 ई.पू.) के सम्राट चिन शी हुआंग के टेराकोटा सेना को देखने के लिए बिताए हैं।

गुओ ने होटल के तीन कमरों में 200 से अधिक योद्धाओं की प्रतिकृतियां रखी हैं, जिसे उन्होंने पिट नंबर 1, नंबर 2 और नंबर 3 का नाम दिया है। मूर्तियां टॉयलेट सीट के सामने और दीवारों में बेड, वॉश बेसिन के नीचे हैं। टाइल्स और तकिए भी कठोर-सामना करने वाले सैनिकों की छवियों के साथ चित्रित किए गए हैं।

रोचक बात ये है कि होटल की बढ़ती लोकप्रियता के बावजूद, कुछ मेहमानों ने शिकायत की है कि वे पूरी रात सोते समय योद्धाओं नहीं देख सकते थे।
तो क्या टोराकोटा मूर्तियों को इसलिए बनाया गया
संसार के प्राचीनतम शहरों में एक चीना का शियान शहर शांक्सी प्रांत की राजधानी है, लेकिन इसकी एक पहचान और है। चीन के पहले सम्राट चिन शी ह्वांग की मृत्यु हुई तो उनके साथ टेराकोटा (पकी हुई मिट्टी) से बनी एक पूरी सेना भी दफ्न की गई। ऐसा इस विश्वास के साथ किया गया था कि सेना हमेशा सम्राट की हिफाजत करती रहेगी।
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शियान शहर में ये टेराकोटा योद्धा आज भी सारी दुनिया के लिए आकर्षण बने हुए हैं। तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व में बनाई गई इस सेना को 29 मार्च, 1974 में स्थानीय किसानों ने कुआं खोदने के दौरान खोजा था। 8000 से भी अधिक इन पैदल योद्धाओं के साथ 150 घुड़सवार, 130 गाड़ियां और 520 घोड़े भी हैं। इनमें से अधिकतर चिन शी ह्वांग के मकबरे के पास ही मिले।
6000 से भी अधिक मूर्तियां, अलग है शक्ल-सूरत
कहा जाता है कि यह सेना की मूर्तियां सरकारी कर्मचारियों द्वारा स्थानीय चीजों से बनाई गई थीं। उनके सिर, हाथ, पैर और धड़ अलग-अलग बनाए गए और फिर उन्हें जोड़ा गया। जोड़ने से पहले इन्हें आग में तपा लिया जाता था। विशेष बात यह है कि सभी योद्धा अपनी हैसियत और शक्ल-सूरत में एक-दूसरे से अलग दिखते हैं। इन्हें तैयार करते समय क्वालिटी का खास ध्यान रखा गया था।

आप इन्हें देखेंगे तो देखते रह जाएंगे क्योंकि विविध आकारों, ओहदों के मुताबिक वर्दी व बालों में ये बेहद सजीव और आदमकद हैं। इनके अलग-अलग हथियार भी असली थे, जिन्हें बाद में लूट लिया गया। समय की मार ने इनका रंग धीरे-धीरे उड़ा दिया। 23 फुट गहरे चार गड्ढों में दफ्न इस टेराकोटा आर्मी ने करीब 1.5 किलोमीटर जगह घेरी हुई है।

230 मीटर लंबे और करीब 62 मीटर चौड़े पहले गड्ढे में मुख्य सेना की 6000 से भी अधिक मूर्तियां हैं। यहां 11 गलियारे बने हैं जो तीन-तीन मीटर चौड़े हैं। लकड़ी से बनी इनकी छत को बारिश से बचाने लिए मिट्टी की परतें चढ़ाकर विशेष उपाय किए गए हैं। दूसरे गड्ढे में घुड़सवार और हिरावल दस्तों को जगह मिली है, जिसके साथ युद्ध में काम आने वाली गाड़ियां हैं। चौथा गड्ढा, लगता है, अधूरा ही छोड़ दिया गया था।
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स्त्रोत: CGTN एवं चीनी न्यूज एजेंसी सिन्हुआ से इनपुट्स के साथ।
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