प्रतीकात्मक चित्र।
- जे. कृष्णमूर्ति, दार्शनिक एवं आध्यात्मिक गुरु।
प्रश्न पूछना आसान है और यदि आप केवल एक उत्तर की तलाश करते हैं, तो आपको वह नहीं मिलेगा, क्योंकि आप समस्या से दूर उत्तर की तलाश करेंगे। जैसे हम विवाह के संदर्भ में समझें तो इसे एक आदर्श के रूप के साथ ही सैद्धांतिक रूप में भी देखना चाहिए।
जब कोई युवा होता है, तो जैविक, यौन इच्छा बहुत मजबूत होती है और इसे सीमित करने के लिए आपके पास विवाह नामक संस्था है। दोनों तरफ जैविक आग्रह है, इसलिए आप शादी करें और बच्चे पैदा करें, ऐसा ही होता है। आप जीवन भर अपने आप को किसी पुरुष या महिला से बांधते हैं, और ऐसा करने से आपके पास आनंद का एक स्थायी स्रोत मौजूद रहता है, यह एक गारंटीकृत सुरक्षा है, लेकिन कुछ समय बाद सभी तो नहीं लेकिन कुछ इस संस्था से बिखरने लगते हैं।
आप एक आदत के चक्र में रहते हैं, और आदत कभी ना कभी टूटती है, यह स्थाई नहीं रहती है। इस जैविक, यौन इच्छा को समझने के लिए बहुत अधिक बुद्धि की आवश्यकता होती है, लेकिन हम बुद्धिमान होने के लिए शिक्षित नहीं हैं। हम केवल एक पुरुष या एक महिला के साथ रहते हैं जिसके साथ हमें रहना है।
अमूमन, लोग 20 या 25 साल की उम्र में शादी करते हैं और वो अपना शेष जीवन एक ऐसी महिला के साथ बिताते हैं, जिसे वो पहले नहीं जानते थे। इसे शादी कहते हैं। इस उदाहरण में, ‘मैं (आप स्वयं को देखें) खुद को देखूं तो, जैसे-जैसे मैं बड़ा होता हूं, मुझे लगता है कि वह मुझसे बिल्कुल अलग है, उसकी रुचियां मुझसे अलग हैं। वो अलग तरह की दिलचस्पी रखती है, मुझे बहुत गंभीर होने में दिलचस्पी है, या इसके विपरीत, और फिर भी हमारे बच्चे हैं, यह सबसे असाधारण बात है।’ यह आपकी समस्या है। इसलिए मैंने एक ऐसा रिश्ता स्थापित किया है जिसका महत्व मैं नहीं जानता, मैंने इसे न तो खोजा है और न ही समझा है। अमूनन दुनिया में यही परिस्थितियां हैं।
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प्रेम करने वाले बहुत कम लोगों के लिए ही वैवाहिक संबंध का महत्व है, उनके लिए यह केवल आदत या सुविधा नहीं है, न ही यह जैविक, यौन आवश्यकता पर आधारित है। वो उस प्यार में होते हैं, जो बिना शर्त है, उनकी पहचानें जुड़ जाती हैं, और ऐसे रिश्ते में एक उपाय है, एक आशा है। लेकिन अधिकांश के लिए, विवाहित संबंध जुड़े नहीं हैं।
वैवाहिक रिश्ते की अलग-अलग पहचानों को मिलाने के लिए, ‘आपको स्वयं को और उसे स्वयं को जानना होगा’, क्या आपके अंदर कोई प्रेम नहीं है? यदि प्रेम है तो वह ताजा है, नया है, केवल तृप्ति नहीं, केवल आदत नहीं। यह बिना शर्त है। आप अपने पति या पत्नी के साथ ऐसा व्यवहार तो नहीं करते हैं? आप अपने अलगाव में रहते हैं, और वह अपने अलगाव में रहती हैं, और आपने सुनिश्चित यौन सुख की अपनी आदतों को स्थापित किया है। इसे एक उदारण से समझें तो, ‘एक सुनिश्चित आय वाले व्यक्ति का क्या होता है? अवश्य ही वह बिगड़ जाता है। क्या आपने इस पर ध्यान नहीं दिया? एक ऐसे व्यक्ति को देखें जिसकी आय सुनिश्चित है और आप जल्द ही देखेंगे कि उसका दिमाग कितनी तेजी से मुरझा रहा है। उसका बड़ा पद हो सकता है, धूर्तता की प्रतिष्ठा हो सकती है, लेकिन जीवन का पूरा आनंद उससे दूर हो जाता है।’ (यह पुनः पढ़ें और इसे अपने संदर्भ में पढ़ें, यदि आप इस स्थिति में हैं?)
इसी तरह, विवाह है जिसमें आपके पास आनंद का एक स्थायी स्रोत है, बिना समझे, बिना प्यार की आदत है, और आप उस स्थिति में रहने के लिए मजबूर हैं। मैं यह नहीं कह रहा कि तुम्हें क्या करना चाहिए, लेकिन पहले समस्या को देखो। क्या आपको लगता है कि यह सही है? इसका मतलब यह नहीं है कि आपको अपनी पत्नी को त्याग देना चाहिए और किसी और का पीछा करना चाहिए, यह नैतिक, सामाजिक और व्यक्तिगत तौर पर गलत है।
इस वैवाहिक रिश्ते का क्या मतलब है? निश्चय ही, प्रेम करना किसी के साथ एकता में होना है, लेकिन क्या आप शारीरिक रूप से छोड़कर अपनी पत्नी के साथ संवाद में हैं? क्या आप उसे शारीरिक रूप से छोड़कर जानते हैं? क्या वह आपको जानती है? क्या आप दोनों अलग-थलग नहीं हैं, आप दोनों ही अपने स्वयं के हितों, महत्वाकांक्षाओं और जरूरतों का पीछा कर रहे हैं, आप दोनों ही एक-दूसरे संतुष्टि, आर्थिक या मनोवैज्ञानिक सुरक्षा की मांग कर रहे हैं?
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ऐसा संबंध कोई संबंध नहीं है। यह मनोवैज्ञानिक, जैविक और आर्थिक आवश्यकता की एक पारस्परिक रूप से जुड़ी हुई प्रक्रिया है, और इसके स्पष्ट परिणाम हैं, संघर्ष, दुख, घबराहट, अधिकारपूर्ण भय, ईर्ष्या, और इसी तरह की काफी ओर भावनाएं हो सकती हैं। क्या आपको लगता है कि ऐसा रिश्ता बदसूरत बच्चों और एक बदसूरत सभ्यता को छोड़कर किसी भी चीज का उत्पादक है? इसलिए, महत्वपूर्ण बात यह है कि पूरी प्रक्रिया को किसी बदसूरत चीज के रूप में नहीं, बल्कि एक वास्तविक तथ्य के रूप में देखा जाए और यह महसूस करते हुए कि आप क्या करने जा रहे हैं? आप इसे यूं ही नहीं छोड़ सकते।
लेकिन, आप इस पर गौर नहीं करना चाहते हैं, आप शराब पीते हैं, हर तरह की राजनीति में लिप्त होते हैं, या किसी महिला/पुरुष के संपर्क में होते हैं, जो आपको घर से और उस परेशान पत्नी या पति से दूर ले जाती है और आपको लगता है कि आपने अपने संकट का हल खोज लिया है। (यह बात विवाहित स्त्री/पुरुष दोनों के संदर्भ में है)
यह तुम्हारा जीवन है? इसलिए, आपको इसके बारे में कुछ करना होगा, जिसका अर्थ है कि आपको इसका सामना करना होगा। जब एक पिता और माता लगातार आपस में झगड़ते रहते हैं, तो क्या आपको लगता है कि इसका बच्चों पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है? पढ़ता है, ऐसा बिल्कुल नहीं करें।
सौजन्य से : ‘पूना, दिल्ली और मद्रास 1948, शब्दशः रिपोर्ट’ पुस्तक, ‘जे कृष्णमूर्ति के एकत्रित कार्य, खंड V’
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