वैज्ञानिकों की एक अंतरराष्ट्रीय टीम ने अंटार्कटिका की एक रिपोर्ट जारी की है जिसमें कहा गया है कि धरती का एकमात्र महाद्वीप जो बर्फ से पूरी तरह से ढका हुआ है मानव गतिविधि और ग्लोबल वार्मिंग के कारण, बहुत तेजी से ये बर्फ पिघल रही है।
1992 से 2011 तक, अंटार्कटिका में सालाना 84 अरब टन बर्फ (76 बिलियन मीट्रिक टन) पिघल गया। नेचर मैगजीन के अध्ययन के मुताबिक 2012 से 2017 तक पिघलने की दर सालाना 241 बिलियन टन (219 अरब मीट्रिक टन) से अधिक हो गई है।
यह रिपोर्ट हैरान कर देने वाली है क्योंकि अंटार्कटिका के बर्फ पिघलने से विश्व में जो देश समुद्र तट पर मौजूद हैं वहां भीषण आपदा आ सकती है। यह रिपोर्ट दुनिया के 42 वैश्विक संगठनों के 84 शोधकर्ताओं की एक टीम ने 2012 और 2017 के बीच किया है, जिसमें अंटार्कटिका के बर्फ पिघलने पर अपने अध्ययन और निष्कर्ष के बारे में विस्तार से बताया गया है।
रिपोर्ट का दावा है कि पिछले पांच सालों में, अंटार्कटिका की बर्फ शीट कम हो गई है और 2012 से 2017 तक हर साल 219 अरब टन बर्फ गिर जाता है, जो कि 2012 से पहले बर्फ पिघल जाने की दर से तीन गुना ज्यादा है। पिछले 25 वर्षों में जमे हुए महाद्वीप में लगभग तीन ट्रिलियन टन बर्फ खो गया।
इतना ही नहीं, लेकिन 1992 से 2017 के बीच, अंटार्कटिका के बर्फ के नुकसान से वैश्विक समुद्र स्तर में लगभग 1 सेंटीमीटर वृद्धि हुई है तो वहीं 2012 और 2017 के बीच पिछले पांच सालों में कुल समुद्र स्तर की वृद्धि का चालीस प्रतिशत हिस्सा पिघल गया है।
इस रिसर्च से जुड़े वैज्ञानिकों का कहना है कि हमें अंटार्कटिका की पिघलती बर्फ को रोकने के प्रयास करने होंगे यदि हम ऐसा करने में असफल साबित हुए तो सन् 2100 तक दुनिया के कई ऐसे देश जो समुद्र तट पर उनके कई शहर जलमग्न हो सकते हैं? चूंकि अंटार्कटिका में 58 मीटर या 190 फीट तक वैश्विक समुद्र के स्तर को बढ़ाने के लिए पर्याप्त बर्फ है।
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