- सद्गुरु जग्गी वासुदेव।
भारत में हज़ारों पीढ़ियों से उसी जमीन को जोता जा रहा है, उसी जमीन पर खेती की जा रही है। लेकिन, पिछली पीढ़ी में मिट्टी की गुणवत्ता इतनी ज्यादा खराब हो गयी है कि ये अब रेगिस्तान बनने की तैयारी में है। उपजाऊ मिट्टी को बचाने के लिये उसमें जैविक (ऑर्गेनिक) अंश अंदर जाना जरूरी है।
हमारे (खेतों पर जो पहले हुआ करते थे वे) सारे पेड़ काट डाले गये हैं और (खेतों पर जानवर भी नहीं है) लाखों जानवरों का निर्यात दूसरे देशों में किया जा रहा है। सही बात तो यह है कि इन पशुओं के रूप में हमारी उपजाऊ, ऊपरी मिट्टी दूसरे देशों में जा रही है। जब ऐसा हुआ है, हो रहा है तो आप मिट्टी को अच्छी दशा में कैसे रख सकते हैं, उसे कैसे उपजाऊ बना सकते हैं?
अगर खेतों की जमीन पर पेड़ों की पत्तियां और जानवरों का कचरा नहीं गिरते, तो मिट्टी में जैविक अंश डालने का कोई तरीका नहीं है। यह एकदम सामान्य बुद्धिमत्ता की बात है जो हमारे किसान परिवार सदियों से जानते थे। वे जानते थे कि खेती की जमीन के आकार, नाप के हिसाब से उस पर कितने पेड़ और कितने जानवर होने चाहिये!
भारत की यह एक राष्ट्रीय आकांक्षा है जो पुराने योजना आयोग ने तय की थी कि भारत का 33% हिस्सा पेड़ों से ढका हुआ होना चाहिये क्योंकि अगर आप अपनी मिट्टी को बचाना, समृद्ध रखना चाहते हैं तो यही तरीका है। और, मैं यह कोशिश कर रहा हूं कि सरकार यह कानून बनाये कि अगर आपके पास 1 हेक्टेयर जमीन है तो उस पर गोवंश के कम से कम 5 जानवर होने चाहियें।
हमारे देश की जमीन के बारे में एक बहुत अद्भुत बात है, जिसके लिये हमारे पास वैज्ञानिक आंकड़े हैं पर अभी भी कोई वैज्ञानिक तर्क, विचार नहीं है। अगर आप देश के किसी ऐसे हिस्से में जायें जहां मिट्टी अच्छी है और उस मिट्टी का 1 घनमीटर हिस्सा लें तो ऐसा बताया जाता है कि उसमें 10,000 प्रकार के जीवजंतु मिलेंगे।
इतना ज्यादा जैविक (ऑर्गेनिक) अंश इस धरती पर और कहीं नहीं मिलता। हमें नहीं मालूम कि ऐसा क्यों है? तो, इस मिट्टी को बस थोड़ा सहारा चाहिये। अगर आप उतनी थोड़ी सहायता दें तो यह मिट्टी जल्दी ही उपजाऊ और बढ़िया हो जायेगी। पर, क्या आज की पीढ़ी के पास यह छोटी सी सहायता देने की समझ है या हम बस ऐसे ही बैठ कर इस जमीन को मरता हुआ देखते रहेंगे?
आप खेती की मिट्टी को रासायनिक खादों और ट्रैक्टर का इस्तेमाल कर के समृद्ध नहीं रख सकते। इस जमीन पर आपको पशुओं की जरूरत है। प्राचीन समय से, जब से हम अन्न उगा रहे हैं, हम फसलों के केवल दाने लेते थे और बाकी पौधे, पशुओं का मल सब खेतों में ही जाते थे। ऐसा लगता है कि हमारी यह बुद्धिमत्ता कहीं खो गयी है।
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