प्रदूषित क्षिप्रा नदी का जल। चित्र सौजन्य : नईदुनिया।
मध्य प्रदेश का इंदौर शहर भारत का सबसे स्वच्छ शहर है, लेकिन इंदौर की स्वच्छता के लिए आस-पास के ग्रामीण अंचल, छोटे शहर और पवित्र नदी क्षिप्रा भारी कीमत चुका रही है।
इस बात की पुष्टि प्रदूषण विभाग की रिपोर्ट करती है। उज्जैन में क्षिप्रा नदी का पानी नहाने के लिए भी शुद्ध नहीं है। उज्जैन के कई स्थानीय अखबारों में प्रकाशित प्रदूषण विभाग की रिपोर्ट के मुताबिक, क्षिप्रा नदी का पानी जब ‘ए’ से ‘ई’ ग्रेड तक मापा गया तो क्षिप्रा का पानी ‘डी’ ग्रेड के स्तर पर निकला। जल का यह स्तर, जल की खराब स्थिति को दर्शाता है।
माना जा रहा है कि क्षिप्रा नदी में प्रदूषण ‘कान्ह नदी’ के कारण हो रहा है, जिसका पानी, क्षिप्रा में मिलता है। इस पानी में घरेलू कचरा, मानवीय गंदगी और इंदौर के इंडस्ट्रियल एरिया का वेस्ट के साथ कई तरह का गंदा पानी छोड़ा जा रहा है, जैसा कि रिपोर्ट में दावा किया गया है।
प्रदूषण विभाग के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. एडी संत बताते हैं कि क्षिप्रा नदी का जल डी ग्रेड का है। इसमें सबसे ज्यादा प्रदूषण इंदौर से आ रही कान्ह नदी के कारण हो रहा है। इस नदी के माध्यम से इंदौर के इंडस्ट्रियल एरिया का वेस्ट और गंदा पानी शिप्रा में मिलता है, जबकि देवास के इंडस्ट्रियल एरिया से गुजर रही नदी का पानी भी शिप्रा में मिल रहा है। इससे भी यह प्रदूषित हो रही है। वहीं शहर में घरेलू कचरे और सीवरेज का पानी प्रदूषण के लिए सबसे ज्यादा जिम्मेदार है।
मध्य प्रदेश सरकार की लाल फीताशाही
स्थानीय अखबार में प्रकाशित रिपोर्ट के मुताबिक, ‘जल संसाधन विभाग ने 800 करोड़ रुपए के तीन प्रोजेक्ट प्रस्तावित किए हैं। ये प्रस्ताव दो साल पहले विभाग ने मप्र शासन को भेजे थे, पर स्वीकृति नहीं मिली। इनमें पहला प्रोजेक्ट, कान्ह नदी पर गोठड़ा में स्थायी बैराज बनाने का। दूसरा, पिपल्याराघो से कालियादेह पैलेस तक बिछाई भूमिगत पाइपलाइन के साथ में खुली नहर का और तीसरा, कान्ह नदी पर गोठड़ा में सीवरेज वेस्ट वाटर ट्रीटमेंट प्लांट का। तीनों काम करवाने से क्षिप्रा का पानी काफी हद तक शुद्ध हो सकता था।’
यह पहली बार नहीं था जब क्षिप्रा की स्वच्छता के लिए कोई प्रोजेक्ट तैयार किया गया है। 90 के दशक में, क्षिप्रा के जल को प्रदूषण मुक्त करने हेतु सन् 1992 में सिंहस्थ के पूर्व लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग ने एक कार्यकारी योजना की रिपोर्ट शासन को पेश की थी। रिपोर्ट में क्षिप्रा जल शुद्धिकरण के लिए उस समय 45 करोड़ 46 लाख प्रस्तावित किए गए थे। यह योजना मूर्ति रूप नहीं ले सकी। इसके बाद कई बार प्रस्ताव पेश किए गए। राज्य सरकार ने काम भी किया लेकिन समस्या जस की तस बनी हुई है।
कहां से निकली है क्षिप्रा नदी
क्षिप्रा नदी, इंदौर जिले के जानापाव की पहाड़ियों से निकली है। यह देवास, उज्जैन में 196 किलोमीटर बहने के बाद मंदसौर में चंबल में जा मिलती है। नदी 80 के दशक से लगातार प्रदूषित हो रही है, जिसका कारण है इंदौर में व्यापार का बढ़ना और दूषित जल कान्ह नदी में छोड़ना, जो बाद में उज्जैन आकर शिप्रा में मिलता है।
हालांकि, मध्य प्रदेश की सरकार ने क्षिप्रा को शुद्ध बनाने के लिए बीते दो दशक में 900 करोड़ रुपए से ज्यादा खर्च कर सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट की स्थापना कराई है। कान्ह डायवर्शन पाइपलाइन बिछवाई हैं। नर्मदा को शिप्रा से जोड़ा है, बावजूद इतना करने पर भी नतीजा शून्य ही रहा है।
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