किस्मत और मेहनत दोनों एक दूसरे के साथ चलती हैं। जब कोई 99 प्रतिशत मेहनत करता हैं तो 1 प्रतिशत किस्मत ही होती है, जो सफलता दिलाती है। चाय की दुकान हो या सरपंच का मकान हर जगह किस्मत की बात होती है, लेकिन यह कोई नहीं पूछता कि खुदा के उस बंदे पर किस्मत आखिर कैसे मेहरबान हुई।
यह वाक्या ठीक उसी तरह है जैसे कि बोरवेल करने वाला कर्मचारी कहता है कि जमीन से पानी निकल आया तो लोग पानी को देखने के लिए दौड़ते हैं, उस कर्मचारी की तरफ कुछ पल के लिए कोई नहीं देखता। यानी, ‘पानी’ किस्मत की चमक सभी देखना चाहते हैं। ‘कर्मचारी’ यानी मेहनत की बात बहुत कम लोग करते हैं।
सवाल यह है कि यह किस्मत कब और कैसे मेहरबान होती है। इसका उत्तर जब खोजने निकलेंगे तो अपने आस-पास कई उदाहरण देखने और पढ़ने को मिलेंगे जो इस बात की ओर इंगित करते हैं। रिलायंस ग्रुप के संस्थापक धीरूभाई अंबानी एक आम व्यक्ति थे, लेकिन वो एक खास व्यक्ति कैसे बने हम सभी जानते हैं। किसी पर किस्मत यूं ही राह चलते मेहरबान नहीं होती है। हां, कुछ लोग अपवाद होते हैं जो चांदी की चम्मच लेकर ही जन्म लेते हैं, लेकिन सभी नहीं।
मैं भोपाल में एक ऐसे लड़के से मिला था जो एक छोटे से रूम में रहता था, आज उसकी अपनी कंपनी है। तीन मंजिला ऑफिस है और वो कई लोगों को रोजगार दे रहा है। उस पर किस्मत कभी मेहरबान नहीं होती यदि वो अपने संघर्ष के दौर में दोनों हाथ खड़े कर देता। कहने का मतलब यह है कि बिना संघर्ष के किस्मत मेहरबान होना मुश्किल है।
फीचर फंडाः जिंदगी का सीधा सा फंडा है। सही दिशा में बस लगे रहो, मंजिल जरूर मिलती है आज नहीं तो कल यदि महान वैज्ञानिक थॉमस एल्वा एडीसन अपने कई प्रयोग करने के बाद यदि सफलता नहीं मिलने पर हार मान लेते तो हमें बल्ब जैसी चीज शायद कभी नहीं मिलती। यदि मिल भी जाती तो वक्त लगता। इसलिए कर्म करते रहिए, किस्मत खुद ब खुद मेहरबान हो जाएगी।
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